Saturday, October 19, 2024

दृढ़ता, कड़ी मेहनत और जुनून ही सफलता की कुंजी हैं

Saturday 19th October 2024 at 6:16 PM By Email Hardeep Kaur Mohali Doaba School

*दोआबा बिजनेस स्कूल द्वारा विशेष सेमिनार का आयोजन 

*सेमिनार में डॉ. शिव कुमार गौतम ने भी बताए सफलता के गुर


मोहाली: 19 अक्टूबर 2024: (हरदीप कौर//एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::

उद्यमिता और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही आपस में पूरी तरह से संबंधित हैं। इनमें से एक में न भी कुछ गड़बड़ी आ जाए तो मामला बिगड़ने लगता है। ज़िंदगी  दोनों की भी पूरी ज़रूरत रहती है। इससे सबंधित एक विशेष सेमिनार में इन सभी बारीकियों की भी ख़ास चर्चा रही। 

शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे दोआबा बिजनेस स्कूल ने छात्रों को एक सफल उद्यमी बनाने के उद्देश्य से 'उद्यमिता और मानसिक स्वास्थ्य' विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया। इस बीच, दोआबा बिजनेस स्कूल के पैरामेडिकल विभाग के प्रमुख रोजी गुल ने कार्यक्रम की मेज़बानी की। कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञ डॉ. शिव कुमार गौतम ने अपने प्रेरक उद्बोधन से विद्यार्थियों को प्रेरित किया। इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए डॉ. शिव कुमार गौतम ने कहा कि सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता। सफलता दृढ़ता, कड़ी मेहनत और जुनून से ही मिलती है। उन्होंने कहा कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए ये तीनों शर्तें अनिवार्य हैं।

दोआबा बिजनेस स्कूल के विद्यार्थियों को सफल उद्यमी बनाने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान ग्रुप के मैनेजिंग वाइस चेयरमैन एस एस संघा ने वक्ताओं को सम्मान चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस मौके पर अन्य लोगों के अलावा डायरेक्टर प्लेसमेंट डॉ. हरप्रीत रॉय, दोआबा कॉलेज ऑफ फार्मेसी के प्रिंसिपल डॉ. प्रीत महिंदर सिंह, दोआबा कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्रिंसिपल डॉ. सुखजिंदर सिंह और डीन स्टूडेंट वेलफेयर मैडम मनिंदर पाल कौर मौजूद थे।  

कार्यक्रम के अंत में दोआबा बिजनेस स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. मीनू जेटली ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया और छात्रों को हर चुनौती का सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने उपस्थित वक्ताओं के समक्ष कई प्रश्न भी रखे जिनका वक्ताओं ने बहुत ही सरल एवं स्पष्ट शब्दों में उत्तर देकर विद्यार्थियों को संतुष्ट किया। छात्रों को सफल उद्यमी बनाने के लिए समूह द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम यादगार बन गया।

इस सफल आयोजन को देखते हुए लगता है कि ऐसे कुछ और आयोजन भी पंजाब के विभिन्नक्षेत्रों में बहुत आवश्यक हैं क्यूंकि पूर्ण सफलता सभी बारीकियों को हर छात्र तक पहुँचाना बहुत ज़रूरी है। 

Thursday, October 3, 2024

मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली के लिए खास खबर

संस्‍कृति मंत्रालय//Azadi ka Amrit Aahotsavg20-India-2023//प्रविष्टि तिथि: 03 OCT 2024 8:31PM by PIB Delhi

मंत्रिमंडल ने इन सभी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को स्वीकृति दी

नई दिल्ली: 03 अक्टूबर 2024:(PIB Delhi//एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::

संकेतक तस्वीर 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

बिंदुवार विवरण एवं पृष्ठभूमि:

भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लियाथा, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए गए:

क. इसके आरंभिक ग्रंथों/एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास की उच्च पुरातनता।

ख. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ी द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

ग. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित भाषाओं का परीक्षण करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषा विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया था।

नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया:

I. इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की 1500-2000 वर्षों की अवधि में उच्च पुरातनता।

II. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

III. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

IV. शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक दौर से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।

 भारत सरकार ने अब तक निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया है:

भाषा

अधिसूचना की तारीख

 

तमिल

12/10/2004

संस्कृत

25/11/2005

तेलुगु

31/10/2008

कन्नड़

31/10/2008

मलयालम

08/08/2013

उड़िया

01/03/2014

 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था, जिसे एलईसी को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की थी। मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए 2017 में मंत्रिमंडल के लिए मसौदा नोट पर अंतर-मंत्रालयी परामर्श के दौरान, गृह मंत्रालय ने मानदंडों को संशोधित करने और इसे सख्त बनाने की सलाह दी। पीएमओ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मंत्रालय यह पता लगाने के लिए इस बात पर विचार कर सकता है कि कितनी अन्य भाषाएं पात्र होने की संभावना है।

इस बीच, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से भी प्रस्ताव प्राप्त हुए।

इस क्रम में, भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति (साहित्य अकादमी के अधीन) ने 25.07.2024 को एक बैठक में सर्वसम्मति से निम्नलिखित मानदंडों को संशोधित किया। साहित्य अकादमी को एलईसी के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।

i. इसकी उच्च पुरातनता 1500-2000 वर्षों की अवधि में आरंभिक ग्रंथ/अभिलेखित इतिहास की है।

ii. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा विरासत माना जाता है।

iii. ज्ञान से संबंधित ग्रंथ, विशेष रूप से कविता, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य के अलावा गद्य ग्रंथ।

iv. शास्त्रीय भाषाएं और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या अपनी शाखाओं के बाद के रूपों से अलग हो सकते हैं।

समिति ने यह भी सिफारिश की कि निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषा माने जाने के लिए संशोधित मानदंडों को पूरा करना होगा।

I. मराठी

II. पाली

III. प्राकृत

IV. असमिया

V. बंगाली

 कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य:

शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, अनुसंधान को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और तमिल भाषा के विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को और बढ़ाने के लिए, मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। इन पहलों के अलावा, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं को दिए जाने वाले लाभों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र शामिल हैं।

रोजगार सृजन सहित प्रमुख प्रभाव:

भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से खासकर शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोजगार के अहम अवसर पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।

शामिल राज्य/जिले:

इसमें शामिल मुख्य राज्य महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) हैं। इससे व्यापक सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होगा।

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एमजी/आरपीएम/केसी/एमपी//(रिलीज़ आईडी: 2061731)