Wednesday 1st May 2024 at 22:09
मंजुल की तरफ से जारी है प्रगतिशील आंदोलन में अपना योगदान
मुंबई: पहली मई 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह--एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::
जब बहुत से संगठन, बहुत से संस्थान और बहुत से समाजिक व सियासी लोग शिक्षा नीति में परिवर्तन के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं उस समय मंच को समर्पित लेखक–निर्देशक मंजुल भारद्धाज अपनी मस्ती में अडिग अडोल रहते हुए साज़िशों की इस धुंध को चीरने में जुटे हुए हैं। उनकी यतीम इस दिशा में कुछ न कुछ करती ही रहती है। उनके सवाल उन साजिशों के पीछे छुपे चेहरों को बेनकाब करने वाले होते हैं जो नारी और शिक्षा के खिलाफ बार बार इस तरह की साईशें रचते हो रहते हैं। सवालों के इसी सिलसिले में लगातार सवाल करते करते मंजुल भारद्वाज बहुत कुछ उधेड़ते चले जाते हैं।
इस लज्जाहीन समाज और सिस्टम पर किसी तमाचे की तरह वह पूछते हैं-कि नाटक,साहित्य और सिनेमा में महिलाओं की क्या भूमिका है? महिलाओं को पुरुषों की यौन संतुष्टि वाली भूमिकाओं तक सीमित रखा जाता है या महिला को नुमाइश, चुगलखोर,घर विध्वंसक,किसी के पति को छीनने का षड्यंत्र करते दिखाया जाता है. क्या देश या दुनिया की महिलाएं यही डिजर्व करती हैं? क्या महिलाएं इसी लायक हैं? सभ्यता,संस्कार,संस्कृति वाले देश और समाज में महिला कहाँ है? क्या रचनाकार उसे एक इंसान के रूप में देखते हैं? क्या खुद महिला भी एक शोभा वस्तु बनकर खुश है या उसके आगे वो अपनी भूमिका देखती है? इस तरह वह नारी मन में भी एक चेतना लगाने का काम कर रहे हैं।
मंजुल सिर्फ कहते नहीं करते भी हैं। आज उनके नाटक का मंचन था। बहुत ही लोकप्रिय नाटक। महिला को एक इंसान के रूप में समता,बंधुता और न्याय की पैरोकार के रूप में अपने आप को खोजते हुए देखिये नाटक ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ में!
इस लोकप्रिय नाटक का नाम भी बहुत अर्थपूर्ण है। लोक –शास्त्र सावित्री (मराठी) इस नाटक के लेखक और निर्देशक हैं स्वयं मंजुल भारद्वाज। इसका मंचन शुरू हुआ नटसम्राट निळू फुले नाट्यगृह, नवी सांगवी #पुणे में मई दिवस के अवसर पर बाद दोपहर 2.30 बजे। इस नाटक की चर्चा हम अपनी दूसरी पोस्टों में भी करते रहेंगे।
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