महर्षि दधीचि की क़ुरबानी को आगे बढ़ाया अब पीजीआई ने
चंडीगढ़: 26 नवंबर 2023: (कार्तिका कल्याणी सिंह //एजुकेशन स्क्रीन)::
पीजीआई ने हाल ही में एक विशेष आयोजन के ज़रिए कुछ ख़ास मानवीय जिम्मेदारियों की तरफ ध्यान दिलाया है। इस आयोजन को देख सुन कर कुछ चिंताएं भी मन में उठती हैं और कभी कभी आत्मग्लानि सी भी महसूस होती है। यही भावना खुद पर भी और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग तक भी जो इस तरफ से अभी तक उदासीन है। हम मृत्यु के बाद देह को व्यर्थ में नष्ट कर डालते हैं जबकि वह बहुत से जीवन बचाने के काम भी आ सकती है। इसी अभियान की सफलता से एक दिन मानव को मृत्यु पर विजय दिलाने का मिशन भी सफल हो सकता है। अंगदान अब बेहद ज़रूरी हो गया है और यह सब बेहद आसान भी है।
विकास और शिक्षा के नाम पर हम जो भी कहते रहें लेकिन हकीकत यही है कि हम आज भी ज़िंदगी और जीवित लोगों की वह कदर नहीं करते जो की जानी चाहिए। बहुत से लोग सड़क हादसों जा विभिन्न बीमारियों की वजह से अस्पताल पहुंचते हैं। उनके इलाज के लिए बहुत बार बहुत से अंगों की ज़रूरत पड़ती है। देश में इस मकसद के लिए जितनी मांग है उसके हिसाब से केवल दस फीसदी की ही पूर्ति हो पाती है।
यदि अंगदान की इस दर को बढ़ाया जा सके तो बहुत से लोगों को स्वस्थ जीवन प्रदान करना काफी हद तक सहज हो सकेगा। पीजीआई में हुए एक विशेष आयोजन ने इस तरफ विशेष ध्यान आकर्षित किया है। इसमें इस दिशा में हुए विकास का विस्तृत विवरण भी मिला। इन्हें में से एक है जिसे एनआरपी तकनीक कहा जाता।
इस तकनीक के अंतर्गत मर चुके अंगों को पुर्नजीवित किया जाता है। यदि यह तकनीक और सफल होती है तो शायद किसी दिन मौत पर भी विजय पाई जा सके। इस तकनीक के चलते खून और ऑक्सीजन देकर मृत अंगों को पुनर्जीवित किया जाता है और फिर उन्हें ज़रूरतमंद मरीज़ों के शरीर में सफलता के साथ प्रत्यारोपित भी किया जा रहा है। इस सफलता की दर यदि बढ़ जाए तो मौत भी विज्ञान के वश में हो जाएगी। उसे बहुत से मामलों में रोका जा सकेगा। बहुत से लोगों का जीवन अनंत तक लम्बा हो सकेगा हालाँकि स्वास्थ्य की समस्याएं और स्वास्थ्य की संभाल फिर भी लगातार धयान का विषय बनी ही रहेगी।
उल्लेखनीय है कि अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में लगातार जो नई तकनीक ईजाद हो रही है उसके जो परिणाम सामने आएँगे उनका फायदा बहुत अद्वित्तीय होगा। डाक्टर भगवान का रूप ही नहीं बल्कि सचमुच भगवान बन जाएंगे। उन तकनीक और तरीकों में से ही एक है नॉर्मोथर्मिक रीजनल परफ्यूजन यानी एनआरपी तकनीक। इसकी मदद से अब मृत अंगों को ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति से पुनर्जीवित कर मरीजों में प्रत्यारोपित किया जा रहा है।
लेकिन इसकी भी अपनी सीमाएं हैं और वक़्त की मजबूरियां भी। इस तकनीक के अंतर्गत एक ध्यान रखनाआवश्यक है कि वक़्त को तेज़ी से संभाला जाए। तय समय पर प्राप्त अंग को निश्चित समय के अंदर अंदर प्रत्यारोपित न करने पर वह बेकार हो जाता है। इस तरह सारी कोशिश भी विफल होने का अंदेशा बना रहता है। अनुमान लगाएं जब महाऋषि दधीचि ने वज्र बनाने के लिए अपनी हड्डियां दान कीं होंगी तो उस समय भी कितनी बातों का ध्यान रखा गया होगा। कहानी सुनने में बहुत रुचिकर और सहज लगती है लेकिन वास्तव में कितनी कठिन रही होगी।
गौरतलब है कि यह चमत्कारी तकनीक अभी चंद देशों में ही उपयोग की जा रही है, जिनमें से अमेरिका एक है। लेकिन जहां भी हो रही है, वहां अंग प्रत्यारोपण की दर तेजी से बढ़ रही है। यह कहना है यूनिवर्सिटी ऑफ राेचेस्टर के किडनी और पैनक्रियाज के सर्जिकल डायरेक्टर डॉ. रणदीप कश्यप का। वह पीजीआई के किडनी और अग्नाशय प्रत्यारोपण पर सेक्टर- 17 स्थित एक होटल में आयोजित स्वर्ण वर्षगांठ शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन शनिवार को बतौर वक्ता मौजूद थे।
डॉ. रणदीप ने बताया कि खराब होने वाले 60 प्रतिशत अंगों को इस तकनीक की मदद से पुनर्जीवित कर उसका प्रत्यारोपण किया जा रहा है। इससे प्रत्यारोपण की दर में भी तेजी से इजाफा हो रहा है। डॉ. रणदीप का कहना है कि समय पर मैचिंग डोनर न मिलने से काफी ज्यादा अंग बेकार हो जाते हैं। ऐसे में इस तकनीक से उन अंगों को मैचिंग डोनर मिलने तक जीवित रखा जा सकता है। इस तकनीक के जरिए मृत अंगों में पुन: ऑक्सीजन और खून की आपूर्ति शुरू की जाती है। इसकी सफलता दर भी 60 से 65 प्रतिशत है। उम्मीद भी की जनि चाहिए और प्रार्थना भी कि इस दर को बढ़ाया जा सके।
कौन कौन से महत्वपूर्ण अंग किए जा रहे हैं सुरक्षित यह जान लेना भी ज़रूरी है। एनआरपी तकनीक का उपयोग कर के किडनी, लिवर, फेफड़ा, हृदय और पैंक्रियाज जैसे अंगों को बंद होने के बाद दोबारा जीवित किया जा रहा है।
डॉ. रणदीप ने बताया कि इस तकनीक का प्रयोग कर अमेरिका में सबसे ज्यादा खराब किडनी प्रत्यारोपण हो रही है। सड़क दुर्घटना या ऐसे ही अन्य मामलों में मौत के बाद अंगों में खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति घंटों बंद होने से वे शरीर के अंदर ही बेकार हो जाते हैं। उस स्थिति में उन अंगों को बाहर निकालकर एक विशेष मशीन की मदद से तब तक सक्रिय रखा जा सकता है, जब तक जरूरी हो।
आज के युग में करिश्मे दिखाने वाली तकनीक एनआरपी नाज़ा इतिहास रच रही है। मेडिकाल क्षेत्र इस करिश्मे को लेकर बहुत उम्मीदें हैं। इसके चमत्कार की चर्चा बहुत तेज़ी से हो रही है। नॉर्मोथर्मिक रीजनल परफ्यूजन एक उभरती हुई तकनीक है, जो सर्कुलेटरी डेथ (डीसीडी) के बाद अंगों को जीवित रखने का एक विकल्प बन रहा है। इसे तुरंत एक्शन में ला कर ज़्यादा फायदा हो सकता है।
उदाहरण के लिए डेड हार्ट के मामले में एनआरपी में खून को आईवीसी से शिरापरक सर्किट से निकाला ऑक्सीजनित किया जाता है और उदर की महाधमनी में वापस कर दिया जाता है। इसके अलावा एक कोडा बैलून कैथेटर (कुक इनकॉर्पोरेटेड, ब्लूमिंगटन, आईएन) को महाधमनी स्थल के माध्यम से डाला जाता है और वक्षीय महाधमनी में फुलाया जाता है। उदर महाधमनी को वक्षीय अंगों और मस्तिष्क में रक्त को जाने से रोकने के लिए डायाफ्राम के ठीक नीचे लगाया जाता है। वक्षीय और मस्तिष्क रक्त के पुर्नचक्रण को रोक दिया जाता है। ऐसी मशीनरी प्रत्यारोपण से पहले अंगों को ऑक्सीजन युक्त और स्वस्थ रखती है।
किन अंगों को कितने समय के अंदर करना होता है प्रत्यारोपित इसका भी विशेष तौर पर ध्यान रखा जाता है। हृदय को 4 से 6 घंटे के अंदर प्रत्यारोपित करना ज़रूरी होता है इसी तरह फेफड़े को 4 से 6 घंटे के अंदर अंदर प्रत्यारोपित करना ज़रूरी होता है। किडनी के मामले में यह अवधि कुछ अलग है। किडनी को 48 से 72 घंटे के अंदर अंदर लगा दिया जाना चाहिए। इसी तरह एक अन्य महत्वपूर्ण अंग लिवर को इस मकसद के लिए 12 से 24 घंटे का समय मिलता है। पैंक्रियाज अर्थात अग्नाशय को 12 से 18 घंटे के अंदर अंदर लगा दिया जाना चाहिए और आंत को 6 से 12 घंटे लगाना उचित होता है।
गौरतलब है कि पाचन तंत्र का प्रमुख अंग और छोटी आंत का पहला भाग होता है अग्नाशय यानी पैंक्रियाज। पेट की यह बड़ी ग्रंथि छोटी आंत के ऊपरी हिस्से के बगल में होती है। पैंक्रियाज भोजन पचाने में सहायता करने वाले हार्मोन और एन्जाइम का उत्पादन करता है। यह शरीर की शर्करा की प्रक्रिया को भी नियंत्रित करने में मदद करता है। इसका कैंसर गंभीर समस्याएं खड़ी कर सकता है। इसकी संभाल के ले विशेष सावधान रहना आवश्यजक है खास कर खान पान के मामले में।
इस दिशा में जो विकास कार्य चल रहे हैं उन्हें देखते हुए अंग दान से जो अंग दान में मिलते हैं उन्हें अंग प्रत्योपन की तकनीक को अब और भी ज़्यादा अच्छी तरह इस्तेमाल किया जा सकेगा। केवल भारत में ही नहीं अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी अंग दान का अभियान अभी और तेज़ किया जाए तभी बात बन सकेगी।
इस संबंध में बात करते हुए विशेषज्ञ बहुत महत्वपूर्ण बातें बताते हैं। उल्लेखनीय है कि जिन दो अंगों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है वे हैं गुर्दे और यकृत। संयुक्त राज्य अमेरिका के स्वास्थ्य और मानव सेवा विभाग के अनुसार, राष्ट्रीय प्रत्यारोपण प्रतीक्षा सूची में लगभग 83 प्रतिशत लोग किडनी प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं और लगभग 12 प्रतिशत लोग यकृत प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। जीवित दाता इनमें से किसी भी अंग को दान करने में सक्षम हैं यदि वे प्राप्तकर्ताओं से मेल खाते हों। इस तरह बहुत से लोगों को नया जीवन मिल सकेगा।
लगभग 2,600 लोग या प्रत्यारोपण सूची के लगभग तीन प्रतिशत लोग हृदय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। फेफड़े, अग्न्याशय और आंतों सहित अन्य अंग प्रतीक्षा सूची के बाकी हिस्से बनाते हैं। हालाँकि सभी उम्र के लोग सूची में हैं, लेकिन आंत प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा करने वालों में से अधिकांश शिशु और बच्चे हैं।
यदि हम महर्षि दधीचि को सचमुच में श्रद्धासुमन अर्पित करना चाहते हैं तो उनकी उस महान क़ुरबानी को हमेशां याद रखें। स्मरण रहे कि भारतीय इतिहास’ में कई दानी हुए हैं, किंतु मानव कल्याण के लिए अपनी अस्थियों का दान करने वाले मात्र महर्षि दधीचि ही थे। महर्षि दधीचि ने उनका अहित चाहने वाले इंद्र को ही अपनी अस्थियां दान कर दीं। वृत्रासुर नामक राक्षस ने देवलोक पर कब्जा कर लिया और इन्द्र सहित सभी देवताओं को देवलोक से बाहर निकाल दिया। महर्षि ने योग विद्या से अपना शरीर त्याग दिया। महर्षि के शरीर की त्वचा, मांस और मज्जा उनके शरीर से अलग हो गए। मानव देह के स्थान पर सिर्फ़ उनकी अस्थियां ही शेष रह गईं। इन्द्र ने उन अस्थियों को श्रद्धापूर्वक नमन किया और उन्हें ले जाकर ‘तेजवान’ नामक व्रज बनाया। आइए अतीत से प्रेरणा लें। महाऋषि दधीचि से प्रेरणा लें।
क्या हम मृत्यु के बाद भी अपने शरीर और अंगों करने से हिचकिचाते रहेंगे? उठिए जागिए और इस अभिजन का सक्रिय हिस्सा बनिए
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