खालसा कालेज फॉर विमैन ने कराया थिएटर वर्कशाप का आयोजन
लुधियाना:10 फरवरी 2020: (कार्तिका सिंह//एजुकेशन स्क्रीन)::
चंडीगढ़, मोगा, मुल्लांपुर, मानसा, कपूरथला और अमृतसर जैसे कुछ क्षेत्र ही बाकी बचे हैं जहाँ थिएटर अभी ज़िंदा है वरना पंजाब में थिएटर अब लुप्त हो चुका है। लुधियाना के पंजाबी भवन में भी जनमेजा सिंह जोहल, सपनदीप कौर, त्रिलोचन सिंह, सिकंदर, बलविंदर कालिया और उन्हीं के कुछ साथी लोग अभी भी सक्रिय हैं जो अपने अपने बलबूते पर अपनी अपनी नाटक मंडलियों को इस महगाई के बावजूद किसी न किसी तरह चलाए चले जा रहे हैं। प्रदीप शर्मा इप्टा और कई अन्य कलाकार भी थिएटर में किस्मत आज़माने के प्रयासों को छोड़ कर अब लघु फिल्मों में अभिनय की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। पंजाब और लुधियाना के क्षमतावान अमीर लोगों ने कभी उनकी मूलभूत ज़रूरतों की तरफ बनता ध्यान नहीं दिया। दाल रोटी की ज़रूरत और कला से लगाव के दरम्यान अब पिस रहा है कलाकार और धीरे धीरे दम तोड़ रहा है थिएटर। अब गुरुशरण भा जी अर्थात मन्ना सिंह के वक़्त का ज़माना लौटता नज़र नहीं आता। ऐसे मायूसी भरे हालात में थिएटर वर्कशाप का आयोजन शायद सोचना भी अटपटा लगता हो लेकिन लुधियाना के सिविल लाईन्ज़ में क्षेत्र स्थित खालसा कालेज फॉर विमैन (KCW) ने एक बार फिर हिम्मत दिखाई है। आंधियों में चिराग जगाने जैसी हिम्मत है यह। स्टेज के कारवां को बचाने का प्रयास है यह। समाज के लिए एक उदाहरण भी है यह आयोजन।
खालसा कालेज में इस बार शनिवार 8 फरवरी 2020 को नाटक और रंगमंच पर एक वर्कशाप का आयोजन किया गया जिसका विषय था "नाटक और रंगमंच-साहित्यिक, समाजिक और सांस्कृतिक भूमिका।" इस वर्कशाप में मुख्य मेहमान थे जानेमाने अदाकार और निर्देशक डा. मोहम्मद रफी। दम तोड़ते थिएटर के समय ऐसी वर्कशाप का आयोजन और उसमें डा. मोहम्मद रफ़ी का आना ताज़ी हवा के झौंके से कम नहीं था। ऐसे आयोजनों से ही बच सकेगा थिएटर।
डा. मोहम्मद रफी जब छात्राओं और स्टाफ के रूबरू हुए थे वे पल बहुत ही भावुक थे। इस मौके पर ज़्यादातर वही लोग मौजूद रहे जी थिएटर के साथ भावुक तौर पर जुड़े हुए हैं। वही लोग जिनको अभी भी लगता है कि नाटकों के ज़रिये भी समाजिक बदलाव सम्भव है। एक नई चेतना विकसित की जा सकती है। यहां वही लोग थे जिनके दिल-ो-दिमाग में सफदर हाशमी की याद अभी बाकी है। वही सफदर हाशमी जिसको कला और मानवता के दुश्मनों ने एक सियासी नेता की अगुवाई में पहली जनवरी 1989 को बुरी तरह पीटा इतना पीटा की वह बुरी तरह घायल हो कर अधमरा गया। हमला उस समय हुआ जब वह अपनी समर्पित टीम के साथ समाजिक बदलाव का संदेश देते हुए "हल्ला बोल" नाटक का मंचन कर रहा था। सियासी गुंडों ने उन्हीं पर हल्ला बोल दिया। उसने खुद आगे बढ़ कर लाठियों और साथियों को बचाने के लिए भगाने में मदद दी। बुरी तरह घायल हुए सफ़दर हाशमी ने हमले के एक दिन बाद 2 जनवरी 1989 को राम मनोहर लोहिया अस्पताल में दम तोड़ दिया। स्टेज के उस शहीद को नमन करने की याद अब बहुत है। वह एक योद्धा था जिसे याद रखना हम सभी के लिए आवश्यक भी है।
सफदर हाश्मी साहिब के जाने के बाद हालात तेज़ी से बदले। पूंजीवाद की हवाएं आंधी बन कर चलीं। आतंकवाद ने भी ज़ोर पकड़ा। अपने ज़माने का प्रसिद्ध संगठन इंडियन पीपल्ज़ थिएटर एसोसिएशन जिसे आम तौर पर "इप्टा" के नाम से जाना जाता है वह भी बेहद कमज़ोर पड़ गया और सफदर हाशमी के समय में स्थापित हुआ "जन नाट्य मंच" भी। फाशीवाद और आतंकवाद के साथ सांस्कृतिक मोर्चे पर टक्कर लेते गुरुशरण भा जी उर्फ़ भाई मन्ना सिंह भी उम्र के साथ चल बसे। फिर कैफ़ी आज़मी, शौकत आज़मी, शबाना आज़मी, जांनिसार अख्तर, जावेद अख्तर और साहिर लुधियानवी सरीखे प्रगतिशील कलमकारों और कलाकारों का रंगमंच काफिला बिखरता ही चला गया।
इसी बीच तकनीकी विकास ने बेहद्द कमाल दिखाए लेकिन रंगमंच को इसका ज़्यादा फायदा नसीब न हुआ क्यूंकि समर्पित लोग एक एक करके उठते चले गए। जो बाकी बचे उनको बेरोज़गारी और गरीबी ने खा लिया। समाज ने रंगमंच के अंत का तमाशा अपनी आँखों से देखा और अब भी लगातार देख रहा है। बहुत कम लोग बचे हैं जो अभी भी रंगमंच को एक आंदोलन की तरह चला रहे हैं। खालसा कालेज फॉर विमैन में आयोजित वर्कशाप वास्तव में उसी आंदोलन को मज़बूत करने का काम करेगी। इस वर्कशाप का आयोजन उन सभी के लिए खुशखबरी की तरह ही है।
इस वर्कशाप में डा. मोहम्मद रफ़ी ने छात्राओं को नाटकों के साथ साथ अभिनय की बारीकियां भी समझाई। यहाँ गौरतलब है कि नाटकों की दुनिया फिल्मों से अंतर सबंधित लगने के बावजूद बहुत से मामलों में काफी अलग भी है। यहाँ रीटेक का मौका नहीं मिलता। यहां भी मेकअप होती है लेकिन फ़िल्मी जादू जैसा काम यहाँ नहीं चलता। ऐसा सम्भव भी नहीं। फिल्मों और नाटकों में यही अंतर नाटक को अधिक जीवंत भी बनाता है। यहाँ अभिनय की कुशलता अधिक ज़िम्मेदारी से निभानी पड़ती है।
डा. मोहम्मद रफ़ी ने सिर्फ कहा नहीं बल्कि अपनी टीम के साथ खुद भी अभिनय करके दिखाया। उनके साथ आये उनके सहयोगी आनंद अनु और पुष्पिंदर सिंह ने इस प्रेक्टिकल मंचन शिक्षा के दौरान पूरी तरह सक्रिय हो कर अभिनय की इस साधना को सबके सामने दिखाया। इस अवसर पर गुरु नानक नैशनल कालेज दोराहा से नाटकों की दुनिया के जानेमाने हस्ताक्षर डा. सोमपाल हीरा भी आये हुए थे जो विशेष अतिथि के तौर पर सुशोभित रहे। उन्होंने भी अपने अनुभवों को बहुत ही यादगारी अंदाज़ में बताया। जी एच जी खालसा कालेज सुधार के एजुकेशन विभाग की प्रमुख प्रोफेसर कंवलजीत कौर, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी जालंधर से डा. सोना भी खास मेहमानों में थे। पंजाबी युनिवर्सिटी पटियाला के हरजिंदर सिंह भी विशेष तौर पर इस वर्कशाप में पहुंचे। उन्होंने युवक मेलों में रंगमंच की भूमिका पर विशेष तौर पर विस्तार से बताया।
वर्कशाप के अंत में खालसा कालेज फॉर विमैन के पंजाबी विभाग की प्रमुख डा. परमजीत कौर पासी ने सभी मेहमानों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि इससे पहले 25 जनवरी 2020 को भी इसी तरह नाटक और रंगमंच पर वर्कशाप का आयोजन कराया गया था। भविष्य में भी ऐसे आयोजन होते रहेंगे।
कालेज की प्रिंसिपल डा. मुक्ति गिल ने कालेज विभाग प्रयास की बहुत ही मधुर शब्दों में प्रशंसा की। व्यक्त की इस तरह के युवा वर्ग आकर्षित और नाटकों की दुनिया हमारे लिए स्वस्थ समाज का निर्माण करने में सहायक होगी। उन्होंने भी आश्वासन दिया कि हम भविष्य में भी ऐसे आयोजन करवाते रहेंगे।
उम्मीद है इस कि इस वर्कशाप का आयोजन थिएटर की आंदोलन को एक नई ऊर्जा और नया जीवन देगा। शायद शिक्षा संस्थानों में ऐसे आयोजनों का प्रचलन तेज़ भी हो सके। --कार्तिका सिंह
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