Friday, February 21, 2020

लड़कियों के राजकीय कालेज में हुआ एलुमनाई का आयोजन

 कालेज की पुरानी छात्राओं ने ताज़ा किये अतीत के वो मधुर दिन 
लुधियाना: 20 फरवरी 2020: (कार्तिक सिंह//एजुकेशन स्क्रीन)::
अंतराल भी बहुत मज़ेदार जादू है। जो बात वर्तमान में आम सी लगती है वही बात कुछ अंतराल के बाद इतनी मधुर और ख़ास बन जाती है कि उसे हर पहलू से महसूस करने का मन होता है। एलुमनाई का आयोजन ऐसा सुवसर ही तो प्रदान करता है। कालेज के वे दिन जब हमें क्लास की डांटडपट बुरी लगती थी अंतराल के बाद कितनी मधुर लगने लगती है। जब ज़िंदगी संवर जाती है तब अहसास होता है कि यदि हमें क्लास की डांट न पड़ी होती तो शायद हमने इतनी तरक्की भी न की होती। जैसे हीरे को तराशा जाता है वैसे ही शिक्षा का समय हमें तराशे जाने का ही समय होता है।  हमारी प्रतिभा को बाहर लाने का एक ऐसा आपरेशन जो सब को नज़र नहीं आता। झिझक के बंधन, डर की दीवारें, ऊंचनीच और भेदभाव का जाल--बहुत कुछ ऐसा होता है जिसने हमारी ज़िंदगी की तरक्की रोक रखी होती है। हमारे जीवन पर गुप्त ताले की तरह होते हैं इस तरह के बहुत से अहसास जो हटाए न जाएँ तो सारी उम्र बंधन बने रहते हैं। स्कूल के बाद कालेज की ज़िंदगी इन तालों को एक एक कर के खोलती है और इसी के साथ खुलते चले जाते हैं हमारी ज़िंदगी में बंधन बन कर छाये हालात के ताले। एलुमनाई के दिनों में याद आते हैं वे सब दिन जब हमें हमारे आदरणीय अध्यापक लोग तराशने का काम करते थे। कितना अजीब सा सत्य है की उनकी साधना का फल हमें मिलता है बस हमें उनके कहे पर चलना होता है। 
         आज गौरमिंट कालेज फॉर गर्ल्ज़ में एलुमनाई की रौनक थी। गुज़रा हुआ वक़्त जो कभी वापिस नहीं आता वह भी इस आयोजन के दौरान कुछ पलों के लिए लौट आता है। सु लेता है पुरानी छात्राओं की दिल से निकली आवाज़ें। पुरानी छात्राओं ने आज नई छात्राओं के चेहरों में वही अपनी अतीत की झलक देखी। अपनी साधना के दिनों को याद किया। अपनी तपश्चर्या के कठिन दिनों को याद करते हुए महसूस किया कि अगर वह तप नहीं किया होता तो शायद आज सफलता की उंचाईआं छूने का शुभ अवसर भी नहीं आता। कालेज की प्रिंसिपल साहिबा और एलुमनाई संस्था की अध्यक्ष डा. मंजू साहनी ने सभी का  स्वागत किया।   इस अवसर पर अपनी ख़ुशी व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जहाँ कालेज की संस्था अपनी होनहार छात्राओं को याद रखती है वहीँ प्रिंसपलज़ और प्रोफेसर्ज भी अपनी मेहनती छात्राओं को याद रखते हैं।  आज का दिन वास्तव में उस प्यार को बांटने का दिन होता है जो समय के साथ साथ बढ़ता ही चला जाता है। कालेज की दीवारें, कालेज के कमरे, कालेज के अतीत की -हर बात-हर चीज़ की याद दिलाते हैं।  एलुमनाई के आयोजन का मकसद उन छात्राओं को स्नेह और सम्मान देना भी होता है जिन्होंने कालेज में शिक्षा प्राप्त करके ज़िंदगी में किसी क्षेत्र में कोई बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त किया होता है।  
एलुमनाई संस्था की परम्परा के मुताबिक आज जानीमानी शख्सियत मैडम अविनाश गुजराल को भी सम्मानित किया गया जो इसी कालेज में से पढ़ कर राजकीय कालेज सिद्धसर के प्रिंसिपल पद तक पहुंचे और अब सेवामुक्त हैं। कोमल कला विभाग के सेवामुक्त प्रोफेसर गुरुचरण सिंह खेहरा को भी सम्मानित गया। इन पलों के दौरान अतीत और वर्तमान का मिलन देखने वाला भी था और महसूस करने वाला भी।  
आजकल खालसा कालेज फॉर विमैन की प्रिंसिपल डा. मुक्ति गिल भी जीसीजी की छात्रा रही हैं। अपनी सादगी और उच्च विचारों पर आधारित जीवनशैली के लिए जानी जाती डा. मुक्ति गिल के चेहरे पर बौद्धिकता की एक ऐसी चमक है जो बहुत कम लोगों के चेहरों पर होती है। बिना शोर किये प्राकृति की तरह बहुत ही ख़ामोशी से  कर्तव्य का पालन करने वाली डा. मुक्ति गिल का भी एलुमनाई के कार्यक्रम में स्वागत किया गया। अपने नाम के अनुरूप ही बेहद वशिष्ठ हैं डा. मुक्ति गिल। 
इसी तरह एक और नाम भी उल्लेखनीय है। आजकल की आधुनिक पत्रकारिता और लेखन में तेज़ी से लोकप्रिय हो रही है ब्लॉग की विधा। ब्लॉग लिखना जितना आसान लगता है वास्तव में  होता नहीं। मुख्य धारा के मीडिया और बड़े बड़े नामी प्रकाशकों के होते हुए केवल ब्लॉग के ज़रिये अपनी जगह बनाना आसान नहीं होता। बहुत ज़िम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करना पड़ता है। एक एक शब्द--एक एक तस्वीर--एक एक शीर्षक बहुत मेहनत करनी पड़ती है  पर। इस मेहनत के रास्ते पर चल कर अपना नाम बनाया है जीसीजी की ही एक छात्रा जैस्मीन खुराना ने। वह ब्लॉगर भी है और शायरा भी। उनका भी सम्मान हुआ तो उनका भी गला भर आया। जैस्मीन खुराना ने कालेज से जुडी बहुत सी यादें ताज़ा की। वह यादें जो आज भी प्रासंगिक हैं। समय गुज़रने के साथ उनकी अहमियत कम नहीं हुई। जैस्मीन का आना वास्तव में ब्लॉग वर्ल्ड  भी ख़ास रहा खासकर मेरे लिए क्यूंकि मैं भी ब्लॉग लिखती हूँ। 
जीसीजी की ही एक और पुरानी छात्रा का ज़िक्र बहुत ही आवश्यक है। डा. सुपिंदरजीत कौर आजकल पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ के लॉ विभाग में प्रोफेसर हैं। इसी तरह सुश्री नाज़ीना बाली आजकल इश्मीत अकैडमी में डीन हैं।  इन दोनों छात्राओं ने अपनी सुरीली आवाज़ से एक बार तो समय बाँध दिया। सारा माहौल संगीतमय हो गया। कालेज की अन्य छात्राओं  ने भी बहुत सी रंगरंग आइटमें प्रस्तुत कीं। 
          इसी यादगारी अवसर पर सुश्री मंजीत सोढिया भी मौजूद थीं, डा. महिंद्र कौर ग्रेवाल भी,  डा. रमेश इंद्र बल भी, सरदार जसवंत सिंह भी, डा. सरबजोत कौर भी, सुश्री शरणजीत कौर भी, मिस खुशपाल कौर भी, मिस बलबीर बजाज भी, डा. पूजा जेतली भी, डा. किरणदीप कौर भी, सुश्री सुखविंदर कौर भी, सुश्री स्वर्ण ग्रेवाल भी, प्रोफेसर किशन सिंह भी, प्रोफेसर कुलवंत सिंह भी, सरदार मेजर सिंह सोही भी, प्रोफेसर ए सी जनेजा भी, सुश्री रश्मि ग्रोवर भी और कई अन्य शख्सियतें भी। कालेज के स्टाफ ने इन सभी को सुस्वागतम कहा। कार्यक्रम के अंत में पुरानी छात्राओं के संगठन की सचिव शरणजीत कौर परमार ने मेहमानों का आभार व्यक्त किया। कुल मिलाकर यह एक यादगारी प्रोग्राम रहा। 
     
  

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