Sunday, August 25, 2024

GND: बैचलर ऑफ डिजाइनिग (स्मैस्टर फोर्थ) का रिज़ल्ट

 Saturday 24th August 2024 at 22:17

भाविनी प्रथम स्थान पर, स्वनिका दुसरे पर और श्रुति तीसरे स्थान पर 


जालंधर: 24 अगस्त 2024: (एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::

गुरु नानक यूनिवर्सिटी के बैचलर ऑफ डिजाइनिग (स्मैस्टर फोर्थ) का रिज़ल्ट निकल चुका है। जिसमे हंस राज महाविद्यालय, जालंधर की छात्रा भाविनी ने यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। बीबीके डीएवी कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर की छात्रा स्वनिका ने दूसरा, श्रुति ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है।

भाविनी को बचपन से ही पेंटिंग का शौंक रहा है। उसके द्वारा बनाई पेंटिंग्स लोगों द्वारा खरीदी जाती हैं। कुछ तो खासतौर पर ऑर्डर दे कर पेंटिंग्स बनवाते है। इस तरह वह अपनी मेहनत से ही अपने कॉलेज की फीस निकाल लेती है। भाविनी PhD कर बच्चों को पढ़ाने का काम करने के साथ खुद का डिजाइन का ब्रांड भी बनाना चाहती है।  

इसी के साथ भाविनी हंसते हुए कहती है बचपन में मैं पढ़ाई से दूर भागती थी, क्योंकि पढ़ाई की अहमियत नहीं पता थी। इसलिए कोई पूछता था पढ़ोगी नही तो क्या करोगी ? तब मैं कहती थी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाऊंगी। क्योंकि मुझे तब खबरें सुन यह लगता था कि अनपढ़ भी यहां नेता आराम से बन जाता हैं। पर समय के साथ मुझे पढ़ाई की अहमियत पता चलती गई। अब मैं सभी जानने वाले बच्चों को खूब पढ़ने के लिए कहती हूं।

जल्द ही हम आपके सामने लाएंगे भाविनी की इस प्रतिभा के संबंध में एक विस्तृत वीडियो स्टोरी। 

Tuesday, August 13, 2024

कहीं आपको अपनी कंपनी से मिला बारकोड घोटाला तो नहीं?

मंगलवार 13 अगस्त 2024 शाम ​​7:07 बजे

 इस बारे में बता रहे हैं जेमा डे लास हेरास जो FTC के साथ उपभोक्ता शिक्षा विशेषज्ञ हैं 


13 अगस्त, 2024

आपकी यूटिलिटी कंपनी जैसी दिखने वाली कंपनी से एक ज़रूरी कॉल आने पर आप सोच सकते हैं: क्या मैं अपना बिल चुकाना भूल गया हूँ? कॉल करने वाला कहता है कि शटऑफ़ और शुल्क से बचने का एक तरीका है: वे आपको टेक्स्ट या ईमेल के ज़रिए एक बारकोड भेजेंगे ताकि आप Walgreens, CVS या Walmart जैसे स्थानीय रिटेलर पर भुगतान कर सकें। ऐसा न करें। यह सब झूठ है। आश्चर्य है कि कैसे पता करें कि यह कोई असली यूटिलिटी कंपनी नहीं है?

घोटालेबाज अप्रत्याशित रूप से कॉल करते हैं और अत्यावश्यकता का एहसास कराते हैं। लेकिन असली यूटिलिटी कंपनियाँ ऐसा नहीं करती हैं। अगर आप पर पैसे बकाया हैं, तो भी वे आपके साथ भुगतान योजना पर काम करेंगे और आपको तुरंत भुगतान करने के लिए डराने की कोशिश नहीं करेंगे - और वे आपको बारकोड नहीं भेजेंगे और न ही आग्रह करेंगे कि आप इसे भुगतान करने के लिए स्टोर पर ले जाएँ।

यहाँ बताया गया है कि ऐसे कॉल या संदेशों से कैसे निपटें जो आपकी उपयोगिता कंपनी से आते हैं:

स्वयं उपयोगिता कंपनी से संपर्क करें। अगर आपको चिंता है कि आप अपने बिलों का भुगतान करने में पीछे रह गए हैं, तो अपने बिल या उपयोगिता कंपनी की वेबसाइट पर दिए गए नंबर का उपयोग करके कंपनी को कॉल करें -कभी भी वह नंबर न चुनें जो कॉल करने वाले ने आपको दिया है, जो आपको वापस घोटालेबाज के पास ले जाएगा।

जान लें कि केवल घोटालेबाज ही आपसे एक निश्चित तरीके से भुगतान की माँग करते हैं। घोटालेबाज आपसे ऐसे तरीके से भुगतान करने के लिए कहते हैं जिससे आपके लिए अपना पैसा वापस पाना मुश्किल हो जाता है - पैसे भेजना, उपहार कार्ड पर पैसे डालना, भुगतान ऐप का उपयोग करना, स्कैन करने योग्य बारकोड या क्यूआर कोड या क्रिप्टोकरेंसी से भुगतान करना। आपकी उपयोगिता कंपनी आपसे उस तरीके से भुगतान की माँग नहीं करेगी।

अगर आपको संदेह है कि आपने किसी घोटालेबाज को भुगतान किया है, तो तुरंत कार्रवाई करें। जिस कंपनी से आपने पैसे भेजे थे, उससे संपर्क करें और उन्हें बताएँ कि यह धोखाधड़ी थी। भुगतान वापस करने के लिए उनकी मदद मांगें। हो सकता है कि आप अपना कुछ पैसा वापस पा सकें।

यूटिलिटी कंपनी के नकली लोगों की रिपोर्ट अपनी यूटिलिटी कंपनी और FTC को ReportFraud.ftc.gov पर करें।

यह पोस्ट मिलिट्री कंज्यूमर यूएसए के सौजन्य से 

Monday, August 12, 2024

जसपाल भट्टी साहिब की यादों को ताज़ा करने की नई पहल

Monday12th August 2024 at 4:30 PM

उनकी प्रतिमा का अनावरण होगा 14 अगस्त, 2024 को

चंडीगढ़: 12 अगस्त, 2024: (के के सिंह//एजुकेशन स्क्रीन डेस्क):: 

जनाब जसपाल भट्टी साहिब का एक युग था। उनके जाने के बाद कभी भी वह दौर लौटकर नहीं आया। उनकी हंसी महज़ लतीफा नहीं होती थी। सिर्फ चुटकला भी नहीं होती थी। वह किसी का मज़ाक उदा कर उसे आहत भी नहीं करते थे लेकिन समाज में घुस आयी बुराइओं को इस अंदाज़ में सामने लाते कि बड़े बड़े स्कैंडलों जैसा घपला हंसी हंसी में बेनकाब होता। उनकी प्रस्तुरी को सुनने यादेखने वाला सिर्फ हंसता ही नहीं बल्कि बहुत गंभीरता से कुछ सोचने को मजबूर हो जाता। बिना कुछ कड़वा बोले या बिना कुछ सख्त शब्द बोले समाज के दुखःद हालात के कारणों पर अपने दर्शकों और श्रोताओं को सोचने के लिए लगा देना यह जसपाल भट्टी साहिब को ही आता था।यह उनकी बहुत बड़ी खूबी थी।

हकीकत पर चिंता नहीं बल्कि एक चिंतन जगाना शायद उनका छिपा हुआ मकसद भी हुआ करता था। हंसी की फुहारों में वह एक चेतना जगा जाते थे। न गम की बात, न ही रोना धोना और न ही किसी दुःख की चर्चा लेकिन समाज को दुःख पहुंचाने वाले कारणों को बहुत ही सलीके से बेनकाब कर जाते थे। उनका ज़ाहि अंदाज़ तब भी अपना रंग दिखता रहा जब वह बहुत पहले एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी अख़बार में कार्टून बनाया करते थे। लोग हर रोज़ उनके कार्टून का सन्देश देखने के लिए अख़बार की इंतज़ार किया करते थे। 

उनकी यादों को ताज़ा करने की पहल की है PEC अर्थात पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के प्रबंधन ने।  चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज ओल्ड स्टूडेंट्स एसोसिएशन (PECOSA) द्वारा एक विशेष समारोह पद्म भूषण से सम्मानित, सम्मानित इंजीनियर, 1978 के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग बैच के पूर्व छात्र, प्रसिद्ध भारतीय टेलीविजन के दिग्गज़ श्री जसपाल भट्टी जी की याद एवं उनके सम्मान में उनकी प्रतिमा का अनावरण 14 अगस्त, 2024 को शाम 4:00 बजे से, PEC ऑडिटोरियम के बाहर किया जा रहा है।

माननीय निदेशक, पीईसी, प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार भाटिया इस शुभ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे, उनके साथ ही प्रो. (डॉ.) राजेश कांडा (प्रमुख, पूर्व छात्र, कॉर्पोरेट और अंतर्राष्ट्रीय संबंध), इस मौके पर सम्मानित अतिथि के रूप में शामिल होंगे। इस पूरे समारोह का आयोजन इंजीनियर  टीकम चंदर बाली (अध्यक्ष, पेकोसा) और इंजीनियर एच.एस. ओबेरॉय (जनरल सचिव, पेकोसा) द्वारा किया गया है। 

यह शाम पूरी तरह से हमारे सम्मानित पूर्व छात्र व् इंजीनियर जसपाल भट्टी और उनके जीवन को समर्पित होगी। इस बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम में उनके मित्र, अन्य पूर्व छात्र, संकाय सदस्य और छात्रों का वर्तमान बैच भी शामिल होगा।

Thursday, August 8, 2024

दोआबा ग्रुप ऑफ कॉलेजिज़ का ओरिएंटेशन कार्यक्रम

 Thursday 8th August 2024 at 2:55 PM

 जो लोग लगन से मेहनत करते हैं उनकी मदद तो कायनात भी करती है-मंजीत सिंह


खरड़
: 8 अगस्त  2024: (एजुकेशन स्क्रीन ब्यूरो)::

मोहाली दोआबा ग्रुप ऑफ कॉलेजिज़ में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले नए छात्रों के लिए समूह द्वारा एक ओरिएंटेशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य नये विद्यार्थियों को दोआबा समूह के नियमों से अवगत कराना, समूह की आंतरिक संरचना से परिचित कराना तथा नये वातावरण में ढालना था। कार्यक्रम की शुरुआत परिसर में श्री सुखमनी साहिब जी का पाठ करके और उसके बाद दोआबा समूह की सफलता के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज से प्रार्थना करके की गई। इसके बाद दोआबा खालसा ट्रस्ट के अध्यक्ष एचएस बाठ, मैनेजिंग वाइस चेयरमैन एसएस संघा, मैनेजमेंट के सदस्य श्री केएस बाठ, मैडम रमनजीत कौर बाठ और ग्रुप एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन सरदार मंजीत सिंह ने शमा रोशन कर की।

बाद में दोआबा खालसा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. एच एस बाठ ने नए छात्रों का स्वागत किया और नियमित पढ़ाई के साथ-साथ लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण और उत्साह की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने छात्रों से अधिक से अधिक पेड़ लगाने और धरती मां को बचाने की अपील की। इसके बाद दोआबा ग्रुप विभिन्न महाविद्यालयों के निदेशकों एवं प्राचार्यों ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं पाठ्यचर्या के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर ग्रुप की ओर से  पिछले सेमेस्टर में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को सम्मानित किया । यहीं नहीं ग्रुप के प्रतिष्ठित कंपनियों में काम करने वाले पूर्व छात्रों ने अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए फ्रेशर्स के साथ अपने अनुभव साझा किए और कहा कि कड़ी मेहनत के बिना कुछ भी संभव नहीं है।

कार्यक्रम के अंत में उपस्थित छात्रों को संबोधित करते हुए सरदार मंजीत सिंह ने कहा कि दोआबा ग्रुप के 25 साल के सफर में दोआबा ग्रुप ने हजारों छात्रों को जॉब प्लेसमेंट मुहैया कराया है । पूरी दुनिया से लगभग हर कंपनी ने दोआबा ग्रुप ऑफ कॉलेजेज का दौरा किया है। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग कंपनियों के नाम बताते हुए आंकड़ों के साथ क्रमश: कुल संख्या भी बताई कि किस कंपनी में कितने छात्रों को दोआबा ग्रुप ने नौकरी दी है। उन्होंने छात्रों को प्रेरित करते हुए आगे कहा कि जो लोग कुछ भी करते हैं एक चाहत, तो पूरी कायनात उस चाहत को पूरा करने में उसकी मदद करने लगती है, बशर्ते उस चीज को हासिल करने के लिए इंसान के अंदर कड़ी मेहनत और ईमानदारी होनी चाहिए। इस तरह विद्यार्थियों के लिए आयोजित यह कार्यक्रम यादगार बन गया।

Thursday, August 1, 2024

क्या नालंदा महाविहार को बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया था?

 Monday 1st July 2024 at 10:33 AM

कहीं नहीं लिखा है कि खिलजी नालंदा आया या उसने ऐसा किया

नालंदा विश्वविद्यालय के नए कैंपस का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जून (2024) को किया।  इस मौके पर म्यांमार, श्रीलंका, वियतनाम, जापान और कोरिया के राजदूतों सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे। इन देशों में से अधिकांश में बौद्ध धर्म सम्राट अशोक द्वारा भेजे गए प्रचारकों के ज़रिये फैला था। नालंदा को पुनर्जीवित कर उसे एक वैश्विक विश्वविद्यालय का स्वरुप देने का प्रस्ताव सबसे पहले 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने किया था। बाद में बिहार विधानसभा और यूपीए सरकार ने इसका अनुमोदन किया। 

इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण देते हुए, मोदी ने कहा कि बारहवीं सदी में विदेशी हमलावरों ने इस विश्वविद्यालय को जला कर राख कर दिया था। वे इसी आम धारणा को दुहरा रहे थे कि महमूद गौरी के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट किया था। 

यह धारणा उसी सामाजिक सोच का हिस्सा है जो मानती है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया और तलवार की नोंक पर लोगों को इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया। इस सोच की नींव ब्रिटिश काल में पड़ी थी जब अंग्रेजों ने देश के इतिहास का साम्प्रदायिक नजरिए से लेखन किया। अंग्रेजों के बाद उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाने का काम हिन्दू और मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों ने किया। 

मुस्लिम लीग द्वारा हिन्दुओं के बारे में फैलाए गए मिथकों के कारण पाकिस्तान में हिन्दुओं का जीना मुहाल हो गया वहीं आरएसएस ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का काम बखूबी अंजाम दिया। यहां तक कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को आरएसएस के बारे में यह लिखना पड़ा कि “उनके सभी भाषण साम्प्रदायिकता से भरे हुए थे। हिन्दुओं को उत्साहित करने और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें लामबंद करने के लिए यह ज़हर फैलाना जरूरी नहीं था। इस जहर का अंतिम नतीजा यह हुआ कि देश को गांधीजी के अनमोल जीवन की बलि भोगनी पड़ी।”

मोदी का यह कहना कि नालंदा को विदेशी हमलावरों ने जलाकर नष्ट किया था झूठी बातों की उसी श्रृंखला का हिस्सा है जो मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए बरसों से इस्तेमाल की जा रही हैं। नालंदा विश्वविद्यालय एक अद्भुत शिक्षण संस्थान था। बिहार के राजगीर में एक बड़े क्षेत्र में फैले इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त वंश के सम्राटों ने छठवीं सदी में किया था। इस बौद्ध शैक्षणिक संस्थान में, जहां सभी विद्यार्थी वहीं रहकर अध्ययन करते थे, मुख्यतः बौद्ध दर्शन पढ़ाया जाता था। इसके अतिरिक्त वहां गणित, तर्कशास्त्र, ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म के ग्रंथ एवं स्वास्थ्य विज्ञान भी पढ़ाए जाते थे। यह विश्वविद्यालय अपने खुलेपन, बेलाग संवादों और तार्किकता को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता था। इसमें पढ़ने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आया करते थे। इस विश्वविद्यालय का खर्च मौर्य वंश के राजाओं के खज़ाने से मिलने वाले धन से चलता था। बाद में पाल और सेन राजवंशों का शासन आने के बाद इस विश्वविद्यालय को मिलने वाली मदद कम हो गई और इसकी जगह अन्य विश्वविद्यालयों जैसे ओदंतपुरी और विक्रमशिला को राजकीय सहायता मिलने लगी। यहीं से नालंदा का पतन शुरू हुआ। 

नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, जिसमें दसियों लाख किताबें, पांडुलिपियां और अन्य दुर्लभ वस्तुएं थीं, को आखिर किसने आग लगाई थी? इसका दोष खिलजी पर मढ़ा जाता रहा है, विशेषकर ब्रिटिश राज के बाद से।  मगर ऐसा एक भी तत्कालीन स्त्रोत नहीं है, जो इसके लिए खिलजी को ज़िम्मेदार ठहराता हो। खिलजी का मुख्य और एकमात्र लक्ष्य था लूटपाट। 

अयोध्या से बंगाल जाते हुए उसने किला-ए-बिहार पर यह सोचकर हमला किया कि उसमें दौलत छिपी होगी। रास्ते में उसने लूटमार की और लोगों को मारा। नालंदा उसके रास्ते में नहीं था, बल्कि जिस रास्ते से वह गुजरा, नालंदा उससे काफी दूर था। और वैसे भी उसके पास किसी विश्वविद्यालय पर हमला करने का कोई कारण नहीं था. उस समय के किसी स्त्रोत में यह नहीं कहा गया है कि खिलजी नालंदा आया था। 

मिनहाज-ए-सिराज द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘तबकात-ए-नासिरी’ में इस तरह की कोई बात नहीं कही गई है।  उस समय दो तिब्बती अध्येता धर्मस्वामिन और सुंपा नालंदा में भारत और विशेषकर यहां बौद्ध धर्म के इतिहास का अध्ययन कर रहे थे। मगर उन्होंने भी अपनी किताबों में यह नहीं लिखा है कि खिलजी नालंदा आया या उसने नालंदा को आग के हवाले किया। एक अन्य बौद्ध अध्येता तारानाथ, जो तिब्बत से था, भी अपनी पुस्तक में इस तरह की चर्चा नहीं करता।

यह दिलचस्प है कि ‘आक्रांताओं’ ने अजंता, एलोरा और सांची स्तूप सहित किसी महत्वपूर्ण बौद्ध ढ़ांचे या संस्थान को नुकसान नहीं पहुंचाया। इतिहासविद् यदुनाथ सरकार और आर. सी. मजूमदार भी इससे सहमत नहीं हैं कि नालंदा को खिलजी ने नष्ट किया था। तो फिर यह विश्वविद्यालय किस तरह नष्ट हुआ और क्यों और कैसे अपना महत्व खो बैठा? इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं जिनमें से एक यह है कि उसे खिलजी ने नष्ट किया था।

प्राचीन भारतीय इतिहास के अप्रतिम अध्येता प्रोफेसर डी. एन. झा अपने लेखों के संकलन (‘अगेंस्ट द ग्रेन’, मनोहर, 2020) में प्रकाशित एक लेख ‘रेसपांडिग टू ए कम्युनलिस्ट’ में तिब्बती भिक्षु तारानाथ की भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास पर लिखी पुस्तक के प्रासंगिक हिस्सों को उद्धत करते हुए लिखते हैं: “नालेन्द्र (नालंदा) में काकुटसिद्ध द्वारा बनाए गए मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान शैतान शमनों ने तीर्थिका भिक्षुकों (ब्राम्हणों) पर गंदगी फैंकी। 

इससे नाराज होकर उनमें से एक आजीविका का इंतजाम करने चला गया और दूसरे ने एक गहरे गड्ढे में बैठकर सूर्य साधना शुरू कर दी...उसने एक यज्ञ किया और पवित्र राख चारों ओर फैला दी जिससे अचानक आग लग गई।”

डी. आर. पाटिल अपनी पुस्तक ‘द एंटीक्वेरियन रेमनेंट्स इन बिहार’ में ‘हिस्ट्री ऑफ इंडियन लाजिक’ को उद्धत करते हुए लिखते हैं कि यह घटना ब्राम्हण और बौद्ध भिक्षुकों के बीच हुए विवाद और संघर्ष की ओर इंगित करती है। ब्राम्हण भिक्षुकों ने सूर्यदेव की उपासना के लिए एक यज्ञ किया और उसके बाद यज्ञ वेदी में से निकालकर जलते हुए अंगारे और गर्म राख बौद्ध मंदिरों में फेंक दी जिसके कारण किताबों के विशाल संग्रह ने आग पकड़ ली।

हमें यह ध्यान में रखना होगा कि भारत में उस समय ब्राम्हणवाद का पुनरूथान हो रहा था और बौद्ध धर्म पर हमले किए जा रहे थे। सम्राट अशोक के शासनकाल में भारत करीब-करीब बौद्ध देश बन गया था। बौद्ध धर्म समानता में आस्था रखता था जिसके कारण आम लोगों में ब्राम्हणवादी कर्मकांडों में रूचि कम हो गई थी। इससे ब्राम्हण बहुत दुःखी और नाराज थे। अशोक के पौत्र और अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और उसके बाद उसने बौद्धों का कत्लेआम करवाया। 

सभी विश्वसनीय स्त्रोतों से हमें यही पता चलता है कि ब्राम्हणों ने बदला लेने के इरादे से नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगाई थी। इसके लिए बख्तियार खिलजी को दोषी ठहराने के पीछे दो उद्देश्य हैं-पहला, मुसलमानों से नफरत करने के कारणों की सूची में एक और कारण जोड़ना और दूसरा, इतिहास के उस दौर में ब्राम्हणों और बौद्धों के बीच संघर्ष और बौद्धों की प्रताड़ना को छिपाना। 

केवल बौद्ध काल के विश्वविद्यालय के प्रांगण में कार्यक्रम आयोजित करने से कुछ होने वाला नहीं है। बौद्ध शैक्षणिक संस्थाओं से हम जो सीख सकते हैं वह है अकादमिक स्वतंत्रता और खुलापन। आज भारत के विश्वविद्यालयों में वातावरण घुटनभरा है और आज्ञाकारिता को सबसे बड़ा गुण मान लिया गया है। 

ऐसे वातावरण में ज्ञान का विस्तार और विकास नहीं हो सकता। भारत में ब्राम्हणवाद और बौद्ध धर्म के बीच संघर्ष का त्रासद इतिहास हमें यही सिखाता है।                               26 जून 2024

(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)