11-अप्रैल-2013 20:13 IST
सृजनात्मक हल: कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय
विशेष लेख---------- ------- डा. के परमेश्वरन
हम राजस्थान में जयपुर के निकट कनौथी गांव में हम शीला से मिले। एक शर्मीली सी लड़की अपने कक्षा अध्यापक के पुकारे जाने पर खड़ी हुई और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा – ‘माई नेम इज़ शीला आई एम स्टडिंग इंगलिश इन दिस स्कूल। आई लाइक द स्कूल वैरी मच’। इस लेख को पढ़ने वाले पाठकों को जो बात हैरान कर सकती है वह है कि शीला 18 वर्ष की है जिसने कभी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है और पश्चिमी राजस्थान के सीमांत क्षेत्र से शायद वह पहली है जो अंग्रेज़ी भाषा बोलती है। यह सब सर्व शिक्षा अभियान के तहत लड़कियों के लिए आवासीय विद्यालय कार्यक्रम कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी)के कारण संभव हो सका है।
कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना लड़कियों के लिए विशेषकर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा अल्पसंख्यक समुदाय की लड़कियों के लिए उच्च प्राथमिक स्तर के आवासीय वि़द्यालय स्थापित करने के लिए आरंभ की गई। यह योजना देश के शैक्षणिक रूप से पिछड़े इलाकों में लागू की जा रही है जहां ग्रामीण महिला साक्षरता राष्ट्रीय दर से पिछड़ी है तथा साक्षरता में लिंग भेद राष्ट्रीय दर से ऊपर है। कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय योजना का उद्देश्य समाज के वंचित तबके की लड़कियों को अच्छी शिक्षा मुहैया कराने के लिए आवासीय विद्यालय स्थापित करने का है।
यह योजना 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू की जा चुकी है। इनमें राजस्थान, तमिलनाडू, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, अरूणाचल प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, दादर एवं नागर हवेली, दिल्ली, गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू तथा कश्मीर, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, आसाम, मेघालय, मिज़ोरम, नागालैंड, ओडिषा, पंजाब, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड तथा पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
वर्तमान जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 2010-11 के आरंभ में केजीबीवी का विस्तार निम्न ग्रामीण स्त्री साक्षरता वाले शैक्षणिक रूप से पिछड़े सभी इलाकों में किया जा चुका था। सबसे ताज़ा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार सरकार अभी तक कुल 2578 केजीबीवी को अनुमोदित कर चुकी है। इनमें से 427 केजीबीवी मुस्लिम बहुत क्षेत्रों में, 612 अनुसूचित जाति तथा 688 अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों में अनुमोदित किए गए हैं।
राजस्थान में स्थापित 200 केजीबीवी में से प्रत्येक या तो सर्वशिक्षा अभियान (एसएसए) अथवा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आरएमएसए) के तहत स्थापित किए गए हैं, ये दोनों कार्यक्रम ही बीच में पढ़ाई छोड़ने की समस्या की रोकथाम के लिए हैं। योजना के तहत प्रत्येक विद्यार्थी को दो जोड़ी वर्दी, जूते, मोजे पढ़ाई का सामान खरीदने के लिए 1800 रू. दिए जाते हैं। विद्यार्थियों को खाने के लिए प्रतिदिन 30 रूपए भी दिए जाते हैं। केजीबीवी की प्रधानाचार्या सुश्री दिनेम चतुर्वेदी का कहना है कि बढ़ते हुए खर्चों के मद्देनज़र भोजन के लिए दी जाने वाली राशि बढ़ाई जा सकती है। उन्होंने यह जानकारी भी दी कि विद्यार्थियों को रोज़ाना दिए जाने वाले भोजन में उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं और स्वाद का भी ध्यान रखा जाता है। सुश्री चतुर्वेदी और उनके साथी कर्मचारियों ने यह भी बताया कि अंग्रेज़ी, विज्ञान, तथा गणित जैसे प्रमुख विषयों के अतिरिक्त मूल्य शिक्षा, सामान्य ज्ञान आदि की भी कक्षाएं लगाई जातीं हैं।
इसके अतिरिक्त सिलाई, कंप्यूटर एप्लीकेशन, डिज़ाइनिंग जैसे व्यवसायिक कौशलों में भी लड़कियों को शिक्षा दी जा रही है।
केजीबीवी योजना का एक दिलचस्प पहलू यह है कि विभिन्न राज्यों की छात्राएं हॉस्टल जैसी सुविधाओं का उपयोग कर पा रही हैं। कनौथी के इस आवासीय विद्यालय में बीकानेर जैसे सुदूर के क्षेत्रों से भी छात्राएं आ रही हैं। अन्य खास बात यहां के प्रशासन में स्थानीय लोगों का शामिल होना है। स्थानीय महिलाओं और अभिभावकों की बहुलतावाली एक समिति विद्यालय और हॉस्टल के रोज़मर्रा के प्रशासन को संभालती है। समाज सेवक, शिक्षाविद् तथा अभिभावक इस समिति के सक्रिय सदस्य हैं।
हमने कोने में चुपचाप खड़ी मुखारी से भी बात की। मुस्कुराते हुए उसने बताया कि उसे अंग्रेज़ी और गणित दोनों की कक्षाओं में मज़ा आता है। उसने बताया कि वह अपने गांव छोटिया पीलिया में अंग्रेज़ी की शिक्षिका बनना चाहती है। यहां एक सीमांत भारतीय गांव की एक लड़की है जो अपने गांव को अपनी शिक्षा से अर्जित क्षमता से लाभ पहुंचाना चाहती है। इस बालिका के इस जवाब से केजीबीवी कार्यक्रम की सफलता का स्वत: ही पता चलता है। (पत्र सूचना कार्यालय विशेष लेख)
* स्वतंत्र लेखक
नोट: लेखक द्वारा व्यक्त विचार उसके अपने हैं और आवश्यक नहीं कि वे पत्र सूचना कार्यालय के विचारों से मेल खायें।
वि.कासोटिया/रजनी/-69
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