Friday 8th November 2024 at 9:52 PM Communication, Information & Media Cell (CIM) Clubs
पेककफेस्ट 2024 की हर्षोल्लास के साथ हुई भव्य शुरुआत
Friday 8th November 2024 at 9:52 PM Communication, Information & Media Cell (CIM) Clubs
पेककफेस्ट 2024 की हर्षोल्लास के साथ हुई भव्य शुरुआत
Saturday 19th October 2024 at 6:16 PM By Email Hardeep Kaur Mohali Doaba School
*दोआबा बिजनेस स्कूल द्वारा विशेष सेमिनार का आयोजन
*सेमिनार में डॉ. शिव कुमार गौतम ने भी बताए सफलता के गुर
उद्यमिता और मानसिक स्वास्थ्य दोनों ही आपस में पूरी तरह से संबंधित हैं। इनमें से एक में न भी कुछ गड़बड़ी आ जाए तो मामला बिगड़ने लगता है। ज़िंदगी दोनों की भी पूरी ज़रूरत रहती है। इससे सबंधित एक विशेष सेमिनार में इन सभी बारीकियों की भी ख़ास चर्चा रही।
शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे दोआबा बिजनेस स्कूल ने छात्रों को एक सफल उद्यमी बनाने के उद्देश्य से 'उद्यमिता और मानसिक स्वास्थ्य' विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया। इस बीच, दोआबा बिजनेस स्कूल के पैरामेडिकल विभाग के प्रमुख रोजी गुल ने कार्यक्रम की मेज़बानी की। कार्यक्रम में विषय विशेषज्ञ डॉ. शिव कुमार गौतम ने अपने प्रेरक उद्बोधन से विद्यार्थियों को प्रेरित किया। इस अवसर पर छात्रों को संबोधित करते हुए डॉ. शिव कुमार गौतम ने कहा कि सफलता का कोई शॉर्ट कट नहीं होता। सफलता दृढ़ता, कड़ी मेहनत और जुनून से ही मिलती है। उन्होंने कहा कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता के लिए ये तीनों शर्तें अनिवार्य हैं।
दोआबा बिजनेस स्कूल के विद्यार्थियों को सफल उद्यमी बनाने के लिए आयोजित इस कार्यक्रम के दौरान ग्रुप के मैनेजिंग वाइस चेयरमैन एस एस संघा ने वक्ताओं को सम्मान चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस मौके पर अन्य लोगों के अलावा डायरेक्टर प्लेसमेंट डॉ. हरप्रीत रॉय, दोआबा कॉलेज ऑफ फार्मेसी के प्रिंसिपल डॉ. प्रीत महिंदर सिंह, दोआबा कॉलेज ऑफ एजुकेशन के प्रिंसिपल डॉ. सुखजिंदर सिंह और डीन स्टूडेंट वेलफेयर मैडम मनिंदर पाल कौर मौजूद थे।
कार्यक्रम के अंत में दोआबा बिजनेस स्कूल की प्रिंसिपल डॉ. मीनू जेटली ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया और छात्रों को हर चुनौती का सामना करने के लिए प्रोत्साहित किया। कार्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों ने उपस्थित वक्ताओं के समक्ष कई प्रश्न भी रखे जिनका वक्ताओं ने बहुत ही सरल एवं स्पष्ट शब्दों में उत्तर देकर विद्यार्थियों को संतुष्ट किया। छात्रों को सफल उद्यमी बनाने के लिए समूह द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम यादगार बन गया।
इस सफल आयोजन को देखते हुए लगता है कि ऐसे कुछ और आयोजन भी पंजाब के विभिन्नक्षेत्रों में बहुत आवश्यक हैं क्यूंकि पूर्ण सफलता सभी बारीकियों को हर छात्र तक पहुँचाना बहुत ज़रूरी है।
संस्कृति मंत्रालय//Azadi ka Amrit Aahotsavg20-India-2023//प्रविष्टि तिथि: 03 OCT 2024 8:31PM by PIB Delhi
मंत्रिमंडल ने इन सभी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को स्वीकृति दी
नई दिल्ली: 03 अक्टूबर 2024:(PIB Delhi//एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::
![]() |
संकेतक तस्वीर |
बिंदुवार विवरण एवं पृष्ठभूमि:
भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लियाथा, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए गए:
क. इसके आरंभिक ग्रंथों/एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास की उच्च पुरातनता।
ख. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ी द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।
ग. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।
शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित भाषाओं का परीक्षण करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषा विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया था।
नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया:
I. इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की 1500-2000 वर्षों की अवधि में उच्च पुरातनता।
II. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।
III. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।
IV. शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक दौर से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।
भारत सरकार ने अब तक निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया है:
भाषा | अधिसूचना की तारीख
|
तमिल | 12/10/2004 |
संस्कृत | 25/11/2005 |
तेलुगु | 31/10/2008 |
कन्नड़ | 31/10/2008 |
मलयालम | 08/08/2013 |
उड़िया | 01/03/2014 |
2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था, जिसे एलईसी को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की थी। मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए 2017 में मंत्रिमंडल के लिए मसौदा नोट पर अंतर-मंत्रालयी परामर्श के दौरान, गृह मंत्रालय ने मानदंडों को संशोधित करने और इसे सख्त बनाने की सलाह दी। पीएमओ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मंत्रालय यह पता लगाने के लिए इस बात पर विचार कर सकता है कि कितनी अन्य भाषाएं पात्र होने की संभावना है।
इस बीच, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से भी प्रस्ताव प्राप्त हुए।
इस क्रम में, भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति (साहित्य अकादमी के अधीन) ने 25.07.2024 को एक बैठक में सर्वसम्मति से निम्नलिखित मानदंडों को संशोधित किया। साहित्य अकादमी को एलईसी के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।
i. इसकी उच्च पुरातनता 1500-2000 वर्षों की अवधि में आरंभिक ग्रंथ/अभिलेखित इतिहास की है।
ii. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा विरासत माना जाता है।
iii. ज्ञान से संबंधित ग्रंथ, विशेष रूप से कविता, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य के अलावा गद्य ग्रंथ।
iv. शास्त्रीय भाषाएं और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या अपनी शाखाओं के बाद के रूपों से अलग हो सकते हैं।
समिति ने यह भी सिफारिश की कि निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषा माने जाने के लिए संशोधित मानदंडों को पूरा करना होगा।
I. मराठी
II. पाली
III. प्राकृत
IV. असमिया
V. बंगाली
कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य:
शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, अनुसंधान को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और तमिल भाषा के विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को और बढ़ाने के लिए, मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। इन पहलों के अलावा, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं को दिए जाने वाले लाभों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र शामिल हैं।
रोजगार सृजन सहित प्रमुख प्रभाव:
भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से खासकर शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोजगार के अहम अवसर पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।
शामिल राज्य/जिले:
इसमें शामिल मुख्य राज्य महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) हैं। इससे व्यापक सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होगा।
*****
एमजी/आरपीएम/केसी/एमपी//(रिलीज़ आईडी: 2061731)
Posted on: 21st September 2024 at 5:28 PM by PIB Delhi शिक्षा मंत्रालय//azadi ka amrit mahotsavg20-india-2023
जारी किया शिक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने
दिशा-निर्देशों और नियमावली के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को जारी किया
नई दिल्ली: 21 सितंबर 2024: (PIB Delhi//एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::
![]() |
तस्वीर हैल्थ एंड फैमिली से साभार |
स्कूली शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा विभाग और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के सचिवों द्वारा हस्ताक्षरित यह संयुक्त परामर्श, विशेष रूप से बच्चों और किशोरों पर तम्बाकू सेवन के खतरनाक प्रभावों पर बल देता है। यह वैश्विक युवा तम्बाकू सर्वेक्षण (जीवाईटीएस) 2019 के निष्कर्षों की ओर ध्यान आकर्षित करता है, जिसमें पता चला है कि भारत में 13 से 15 वर्ष की आयु के 8.5 प्रतिशत स्कूली छात्र विभिन्न रूपों में तम्बाकू का सेवन करते हैं। विशेष रूप से चिंता की बात यह है कि भारत में हर दिन 5,500 से अधिक बच्चे तम्बाकू का सेवन शुरू करते हैं। इसके अलावा, आजीवन तम्बाकू का सेवन करने वाले 55 प्रतिशत लोग 20 वर्ष की आयु से पहले ही इस आदत को अपना लेते हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई किशोर अन्य नशीले पदार्थों का रूख कर लेते हैं। परामर्श में युवाओं को तम्बाकू की लत के खतरों से बचाने के लिए सभी हितधारकों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। इसका लक्ष्य तम्बाकू के उपयोग के हानिकारक प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर और शैक्षणिक संस्थानों में तम्बाकू नियंत्रण उपायों को बढ़ावा देकर भावी पीढ़ियों की रक्षा करना है।
राष्ट्रीय तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम (एनटीसीपी) के हिस्से के रूप में, भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने नाबालिगों एवं युवाओं को तंबाकू और इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के उपयोग से बचाने के लिए तंबाकू मुक्त शैक्षणिक संस्थान (टीओएफईआई) दिशानिर्देश जारी किए। इसके अलावा, स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग ने सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक विकास सोसायटी (सीड्स) के सहयोग से विश्व तंबाकू निषेध दिवस (डब्ल्यूएनटीडी) पर टीओएफईआई कार्यान्वयन नियमावली तैयार की और उसे लॉन्च किया है। विभाग ने अनुपालन के लिए सभी राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को 31 मई 2024 को मैनुअल जारी किया।
टीओएफईआई नियमावली शैक्षणिक संस्थानों के लिए इन तंबाकू विरोधी उपायों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन के रूप में कार्य करती है। नियमावली में निम्नलिखित उद्देश्यों की रूपरेखा दी गई है:
i. शैक्षिक संस्थानों में छात्रों, शिक्षकों, श्रमिकों एवं अधिकारियों के बीच तंबाकू के उपयोग के हानिकारक प्रभावों और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव के बारे में अधिक जागरूकता;
ii. तम्बाकू छोड़ने के लिए उपलब्ध विभिन्न तरीकों के बारे में जागरूकता;
iii. शैक्षणिक संस्थानों में स्वस्थ एवं तम्बाकू मुक्त वातावरण तथा सभी शैक्षणिक संस्थान तम्बाकू मुक्त हो जाएं; तथा
iv. तम्बाकू उत्पादों की बिक्री और उपयोग के संबंध में कानूनी प्रावधानों का बेहतर कार्यान्वयन, विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों, सार्वजनिक स्थानों, वैधानिक चेतावनियों और नाबालिगों से संबंधित प्रावधानों का बेहतर कार्यान्वयन।
यह परामर्श सभी स्तरों के स्कूलों, उच्च या व्यावसायिक शिक्षा के लिए कॉलेजों और सार्वजनिक एवं निजी दोनों क्षेत्रों के विश्वविद्यालयों सहित शैक्षणिक संस्थानों को छात्रों के स्वास्थ्य और कल्याण की सुरक्षा के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका के रूप में टीओएफईआई नियमावली और दिशा-निर्देशों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है।
सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से, सरकार का लक्ष्य बच्चों में तम्बाकू के उपयोग को कम करना और भावी पीढ़ियों को नशे की लत में पड़ने से रोकना है। शिक्षा मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय राज्य और जिला स्तर के अधिकारियों के साथ मिलकर काम करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इन उपायों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रभावी रूप से लागू किया जाए।
टीओएफईआई मैनुअल के कार्यान्वयन नियमावली तक पहुंचने के लिए यूआरएल: https://dsel.education.gov.in/sites/default/files/update/im_tofel.pdf
टीओएफईआई दिशा-निर्देशों को देखने के लिए यूआरएल:
https://ntcp.mohfw.gov.in/assets/document/TEFI-Guidelines.pdf
*****//एमजी/एआर/केपी/एसके//(रिलीज़ आईडी: 2057383)
Saturday 24th August 2024 at 22:17
भाविनी प्रथम स्थान पर, स्वनिका दुसरे पर और श्रुति तीसरे स्थान पर
गुरु नानक यूनिवर्सिटी के बैचलर ऑफ डिजाइनिग (स्मैस्टर फोर्थ) का रिज़ल्ट निकल चुका है। जिसमे हंस राज महाविद्यालय, जालंधर की छात्रा भाविनी ने यूनिवर्सिटी में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। बीबीके डीएवी कॉलेज फॉर विमेन, अमृतसर की छात्रा स्वनिका ने दूसरा, श्रुति ने तीसरा स्थान प्राप्त किया है।
भाविनी को बचपन से ही पेंटिंग का शौंक रहा है। उसके द्वारा बनाई पेंटिंग्स लोगों द्वारा खरीदी जाती हैं। कुछ तो खासतौर पर ऑर्डर दे कर पेंटिंग्स बनवाते है। इस तरह वह अपनी मेहनत से ही अपने कॉलेज की फीस निकाल लेती है। भाविनी PhD कर बच्चों को पढ़ाने का काम करने के साथ खुद का डिजाइन का ब्रांड भी बनाना चाहती है।
इसी के साथ भाविनी हंसते हुए कहती है बचपन में मैं पढ़ाई से दूर भागती थी, क्योंकि पढ़ाई की अहमियत नहीं पता थी। इसलिए कोई पूछता था पढ़ोगी नही तो क्या करोगी ? तब मैं कहती थी मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बन जाऊंगी। क्योंकि मुझे तब खबरें सुन यह लगता था कि अनपढ़ भी यहां नेता आराम से बन जाता हैं। पर समय के साथ मुझे पढ़ाई की अहमियत पता चलती गई। अब मैं सभी जानने वाले बच्चों को खूब पढ़ने के लिए कहती हूं।
जल्द ही हम आपके सामने लाएंगे भाविनी की इस प्रतिभा के संबंध में एक विस्तृत वीडियो स्टोरी।
मंगलवार 13 अगस्त 2024 शाम 7:07 बजे
इस बारे में बता रहे हैं जेमा डे लास हेरास जो FTC के साथ उपभोक्ता शिक्षा विशेषज्ञ हैं
आपकी यूटिलिटी कंपनी जैसी दिखने वाली कंपनी से एक ज़रूरी कॉल आने पर आप सोच सकते हैं: क्या मैं अपना बिल चुकाना भूल गया हूँ? कॉल करने वाला कहता है कि शटऑफ़ और शुल्क से बचने का एक तरीका है: वे आपको टेक्स्ट या ईमेल के ज़रिए एक बारकोड भेजेंगे ताकि आप Walgreens, CVS या Walmart जैसे स्थानीय रिटेलर पर भुगतान कर सकें। ऐसा न करें। यह सब झूठ है। आश्चर्य है कि कैसे पता करें कि यह कोई असली यूटिलिटी कंपनी नहीं है?
घोटालेबाज अप्रत्याशित रूप से कॉल करते हैं और अत्यावश्यकता का एहसास कराते हैं। लेकिन असली यूटिलिटी कंपनियाँ ऐसा नहीं करती हैं। अगर आप पर पैसे बकाया हैं, तो भी वे आपके साथ भुगतान योजना पर काम करेंगे और आपको तुरंत भुगतान करने के लिए डराने की कोशिश नहीं करेंगे - और वे आपको बारकोड नहीं भेजेंगे और न ही आग्रह करेंगे कि आप इसे भुगतान करने के लिए स्टोर पर ले जाएँ।
यहाँ बताया गया है कि ऐसे कॉल या संदेशों से कैसे निपटें जो आपकी उपयोगिता कंपनी से आते हैं:
स्वयं उपयोगिता कंपनी से संपर्क करें। अगर आपको चिंता है कि आप अपने बिलों का भुगतान करने में पीछे रह गए हैं, तो अपने बिल या उपयोगिता कंपनी की वेबसाइट पर दिए गए नंबर का उपयोग करके कंपनी को कॉल करें -कभी भी वह नंबर न चुनें जो कॉल करने वाले ने आपको दिया है, जो आपको वापस घोटालेबाज के पास ले जाएगा।
जान लें कि केवल घोटालेबाज ही आपसे एक निश्चित तरीके से भुगतान की माँग करते हैं। घोटालेबाज आपसे ऐसे तरीके से भुगतान करने के लिए कहते हैं जिससे आपके लिए अपना पैसा वापस पाना मुश्किल हो जाता है - पैसे भेजना, उपहार कार्ड पर पैसे डालना, भुगतान ऐप का उपयोग करना, स्कैन करने योग्य बारकोड या क्यूआर कोड या क्रिप्टोकरेंसी से भुगतान करना। आपकी उपयोगिता कंपनी आपसे उस तरीके से भुगतान की माँग नहीं करेगी।
अगर आपको संदेह है कि आपने किसी घोटालेबाज को भुगतान किया है, तो तुरंत कार्रवाई करें। जिस कंपनी से आपने पैसे भेजे थे, उससे संपर्क करें और उन्हें बताएँ कि यह धोखाधड़ी थी। भुगतान वापस करने के लिए उनकी मदद मांगें। हो सकता है कि आप अपना कुछ पैसा वापस पा सकें।
यूटिलिटी कंपनी के नकली लोगों की रिपोर्ट अपनी यूटिलिटी कंपनी और FTC को ReportFraud.ftc.gov पर करें।
Monday12th August 2024 at 4:30 PM
उनकी प्रतिमा का अनावरण होगा 14 अगस्त, 2024 को
चंडीगढ़: 12 अगस्त, 2024: (के के सिंह//एजुकेशन स्क्रीन डेस्क)::
हकीकत पर चिंता नहीं बल्कि एक चिंतन जगाना शायद उनका छिपा हुआ मकसद भी हुआ करता था। हंसी की फुहारों में वह एक चेतना जगा जाते थे। न गम की बात, न ही रोना धोना और न ही किसी दुःख की चर्चा लेकिन समाज को दुःख पहुंचाने वाले कारणों को बहुत ही सलीके से बेनकाब कर जाते थे। उनका ज़ाहि अंदाज़ तब भी अपना रंग दिखता रहा जब वह बहुत पहले एक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी अख़बार में कार्टून बनाया करते थे। लोग हर रोज़ उनके कार्टून का सन्देश देखने के लिए अख़बार की इंतज़ार किया करते थे।
उनकी यादों को ताज़ा करने की पहल की है PEC अर्थात पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के प्रबंधन ने। चंडीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज ओल्ड स्टूडेंट्स एसोसिएशन (PECOSA) द्वारा एक विशेष समारोह पद्म भूषण से सम्मानित, सम्मानित इंजीनियर, 1978 के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग बैच के पूर्व छात्र, प्रसिद्ध भारतीय टेलीविजन के दिग्गज़ श्री जसपाल भट्टी जी की याद एवं उनके सम्मान में उनकी प्रतिमा का अनावरण 14 अगस्त, 2024 को शाम 4:00 बजे से, PEC ऑडिटोरियम के बाहर किया जा रहा है।
माननीय निदेशक, पीईसी, प्रो. (डॉ.) राजेश कुमार भाटिया इस शुभ समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होंगे, उनके साथ ही प्रो. (डॉ.) राजेश कांडा (प्रमुख, पूर्व छात्र, कॉर्पोरेट और अंतर्राष्ट्रीय संबंध), इस मौके पर सम्मानित अतिथि के रूप में शामिल होंगे। इस पूरे समारोह का आयोजन इंजीनियर टीकम चंदर बाली (अध्यक्ष, पेकोसा) और इंजीनियर एच.एस. ओबेरॉय (जनरल सचिव, पेकोसा) द्वारा किया गया है।
यह शाम पूरी तरह से हमारे सम्मानित पूर्व छात्र व् इंजीनियर जसपाल भट्टी और उनके जीवन को समर्पित होगी। इस बहुप्रतीक्षित कार्यक्रम में उनके मित्र, अन्य पूर्व छात्र, संकाय सदस्य और छात्रों का वर्तमान बैच भी शामिल होगा।
Thursday 8th August 2024 at 2:55 PM
जो लोग लगन से मेहनत करते हैं उनकी मदद तो कायनात भी करती है-मंजीत सिंह
मोहाली दोआबा ग्रुप ऑफ कॉलेजिज़ में विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने वाले नए छात्रों के लिए समूह द्वारा एक ओरिएंटेशन कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य नये विद्यार्थियों को दोआबा समूह के नियमों से अवगत कराना, समूह की आंतरिक संरचना से परिचित कराना तथा नये वातावरण में ढालना था। कार्यक्रम की शुरुआत परिसर में श्री सुखमनी साहिब जी का पाठ करके और उसके बाद दोआबा समूह की सफलता के लिए श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज से प्रार्थना करके की गई। इसके बाद दोआबा खालसा ट्रस्ट के अध्यक्ष एचएस बाठ, मैनेजिंग वाइस चेयरमैन एसएस संघा, मैनेजमेंट के सदस्य श्री केएस बाठ, मैडम रमनजीत कौर बाठ और ग्रुप एग्जीक्यूटिव वाइस चेयरमैन सरदार मंजीत सिंह ने शमा रोशन कर की।
बाद में दोआबा खालसा ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. एच एस बाठ ने नए छात्रों का स्वागत किया और नियमित पढ़ाई के साथ-साथ लक्ष्य तक पहुंचने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण और उत्साह की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने छात्रों से अधिक से अधिक पेड़ लगाने और धरती मां को बचाने की अपील की। इसके बाद दोआबा ग्रुप विभिन्न महाविद्यालयों के निदेशकों एवं प्राचार्यों ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं पाठ्यचर्या के बारे में जानकारी दी। इस अवसर पर ग्रुप की ओर से पिछले सेमेस्टर में प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त करने वाले छात्रों को सम्मानित किया । यहीं नहीं ग्रुप के प्रतिष्ठित कंपनियों में काम करने वाले पूर्व छात्रों ने अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए फ्रेशर्स के साथ अपने अनुभव साझा किए और कहा कि कड़ी मेहनत के बिना कुछ भी संभव नहीं है।
कार्यक्रम के अंत में उपस्थित छात्रों को संबोधित करते हुए सरदार मंजीत सिंह ने कहा कि दोआबा ग्रुप के 25 साल के सफर में दोआबा ग्रुप ने हजारों छात्रों को जॉब प्लेसमेंट मुहैया कराया है । पूरी दुनिया से लगभग हर कंपनी ने दोआबा ग्रुप ऑफ कॉलेजेज का दौरा किया है। इस दौरान उन्होंने अलग-अलग कंपनियों के नाम बताते हुए आंकड़ों के साथ क्रमश: कुल संख्या भी बताई कि किस कंपनी में कितने छात्रों को दोआबा ग्रुप ने नौकरी दी है। उन्होंने छात्रों को प्रेरित करते हुए आगे कहा कि जो लोग कुछ भी करते हैं एक चाहत, तो पूरी कायनात उस चाहत को पूरा करने में उसकी मदद करने लगती है, बशर्ते उस चीज को हासिल करने के लिए इंसान के अंदर कड़ी मेहनत और ईमानदारी होनी चाहिए। इस तरह विद्यार्थियों के लिए आयोजित यह कार्यक्रम यादगार बन गया।
Monday 1st July 2024 at 10:33 AM
कहीं नहीं लिखा है कि खिलजी नालंदा आया या उसने ऐसा किया
इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाषण देते हुए, मोदी ने कहा कि बारहवीं सदी में विदेशी हमलावरों ने इस विश्वविद्यालय को जला कर राख कर दिया था। वे इसी आम धारणा को दुहरा रहे थे कि महमूद गौरी के सिपहसालार बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट किया था।
यह धारणा उसी सामाजिक सोच का हिस्सा है जो मानती है कि मुस्लिम आक्रांताओं ने हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया और तलवार की नोंक पर लोगों को इस्लाम अपनाने पर मजबूर किया। इस सोच की नींव ब्रिटिश काल में पड़ी थी जब अंग्रेजों ने देश के इतिहास का साम्प्रदायिक नजरिए से लेखन किया। अंग्रेजों के बाद उनकी इस विरासत को आगे बढ़ाने का काम हिन्दू और मुस्लिम साम्प्रदायिक ताकतों ने किया।
मुस्लिम लीग द्वारा हिन्दुओं के बारे में फैलाए गए मिथकों के कारण पाकिस्तान में हिन्दुओं का जीना मुहाल हो गया वहीं आरएसएस ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का काम बखूबी अंजाम दिया। यहां तक कि सरदार वल्लभ भाई पटेल को आरएसएस के बारे में यह लिखना पड़ा कि “उनके सभी भाषण साम्प्रदायिकता से भरे हुए थे। हिन्दुओं को उत्साहित करने और उनकी सुरक्षा के लिए उन्हें लामबंद करने के लिए यह ज़हर फैलाना जरूरी नहीं था। इस जहर का अंतिम नतीजा यह हुआ कि देश को गांधीजी के अनमोल जीवन की बलि भोगनी पड़ी।”
मोदी का यह कहना कि नालंदा को विदेशी हमलावरों ने जलाकर नष्ट किया था झूठी बातों की उसी श्रृंखला का हिस्सा है जो मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए बरसों से इस्तेमाल की जा रही हैं। नालंदा विश्वविद्यालय एक अद्भुत शिक्षण संस्थान था। बिहार के राजगीर में एक बड़े क्षेत्र में फैले इस विश्वविद्यालय का निर्माण गुप्त वंश के सम्राटों ने छठवीं सदी में किया था। इस बौद्ध शैक्षणिक संस्थान में, जहां सभी विद्यार्थी वहीं रहकर अध्ययन करते थे, मुख्यतः बौद्ध दर्शन पढ़ाया जाता था। इसके अतिरिक्त वहां गणित, तर्कशास्त्र, ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म के ग्रंथ एवं स्वास्थ्य विज्ञान भी पढ़ाए जाते थे। यह विश्वविद्यालय अपने खुलेपन, बेलाग संवादों और तार्किकता को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता था। इसमें पढ़ने के लिए दूर-दूर से विद्यार्थी आया करते थे। इस विश्वविद्यालय का खर्च मौर्य वंश के राजाओं के खज़ाने से मिलने वाले धन से चलता था। बाद में पाल और सेन राजवंशों का शासन आने के बाद इस विश्वविद्यालय को मिलने वाली मदद कम हो गई और इसकी जगह अन्य विश्वविद्यालयों जैसे ओदंतपुरी और विक्रमशिला को राजकीय सहायता मिलने लगी। यहीं से नालंदा का पतन शुरू हुआ।
नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, जिसमें दसियों लाख किताबें, पांडुलिपियां और अन्य दुर्लभ वस्तुएं थीं, को आखिर किसने आग लगाई थी? इसका दोष खिलजी पर मढ़ा जाता रहा है, विशेषकर ब्रिटिश राज के बाद से। मगर ऐसा एक भी तत्कालीन स्त्रोत नहीं है, जो इसके लिए खिलजी को ज़िम्मेदार ठहराता हो। खिलजी का मुख्य और एकमात्र लक्ष्य था लूटपाट।
अयोध्या से बंगाल जाते हुए उसने किला-ए-बिहार पर यह सोचकर हमला किया कि उसमें दौलत छिपी होगी। रास्ते में उसने लूटमार की और लोगों को मारा। नालंदा उसके रास्ते में नहीं था, बल्कि जिस रास्ते से वह गुजरा, नालंदा उससे काफी दूर था। और वैसे भी उसके पास किसी विश्वविद्यालय पर हमला करने का कोई कारण नहीं था. उस समय के किसी स्त्रोत में यह नहीं कहा गया है कि खिलजी नालंदा आया था।
मिनहाज-ए-सिराज द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘तबकात-ए-नासिरी’ में इस तरह की कोई बात नहीं कही गई है। उस समय दो तिब्बती अध्येता धर्मस्वामिन और सुंपा नालंदा में भारत और विशेषकर यहां बौद्ध धर्म के इतिहास का अध्ययन कर रहे थे। मगर उन्होंने भी अपनी किताबों में यह नहीं लिखा है कि खिलजी नालंदा आया या उसने नालंदा को आग के हवाले किया। एक अन्य बौद्ध अध्येता तारानाथ, जो तिब्बत से था, भी अपनी पुस्तक में इस तरह की चर्चा नहीं करता।
यह दिलचस्प है कि ‘आक्रांताओं’ ने अजंता, एलोरा और सांची स्तूप सहित किसी महत्वपूर्ण बौद्ध ढ़ांचे या संस्थान को नुकसान नहीं पहुंचाया। इतिहासविद् यदुनाथ सरकार और आर. सी. मजूमदार भी इससे सहमत नहीं हैं कि नालंदा को खिलजी ने नष्ट किया था। तो फिर यह विश्वविद्यालय किस तरह नष्ट हुआ और क्यों और कैसे अपना महत्व खो बैठा? इस बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं जिनमें से एक यह है कि उसे खिलजी ने नष्ट किया था।
प्राचीन भारतीय इतिहास के अप्रतिम अध्येता प्रोफेसर डी. एन. झा अपने लेखों के संकलन (‘अगेंस्ट द ग्रेन’, मनोहर, 2020) में प्रकाशित एक लेख ‘रेसपांडिग टू ए कम्युनलिस्ट’ में तिब्बती भिक्षु तारानाथ की भारत में बौद्ध धर्म के इतिहास पर लिखी पुस्तक के प्रासंगिक हिस्सों को उद्धत करते हुए लिखते हैं: “नालेन्द्र (नालंदा) में काकुटसिद्ध द्वारा बनाए गए मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान शैतान शमनों ने तीर्थिका भिक्षुकों (ब्राम्हणों) पर गंदगी फैंकी।
इससे नाराज होकर उनमें से एक आजीविका का इंतजाम करने चला गया और दूसरे ने एक गहरे गड्ढे में बैठकर सूर्य साधना शुरू कर दी...उसने एक यज्ञ किया और पवित्र राख चारों ओर फैला दी जिससे अचानक आग लग गई।”
डी. आर. पाटिल अपनी पुस्तक ‘द एंटीक्वेरियन रेमनेंट्स इन बिहार’ में ‘हिस्ट्री ऑफ इंडियन लाजिक’ को उद्धत करते हुए लिखते हैं कि यह घटना ब्राम्हण और बौद्ध भिक्षुकों के बीच हुए विवाद और संघर्ष की ओर इंगित करती है। ब्राम्हण भिक्षुकों ने सूर्यदेव की उपासना के लिए एक यज्ञ किया और उसके बाद यज्ञ वेदी में से निकालकर जलते हुए अंगारे और गर्म राख बौद्ध मंदिरों में फेंक दी जिसके कारण किताबों के विशाल संग्रह ने आग पकड़ ली।
हमें यह ध्यान में रखना होगा कि भारत में उस समय ब्राम्हणवाद का पुनरूथान हो रहा था और बौद्ध धर्म पर हमले किए जा रहे थे। सम्राट अशोक के शासनकाल में भारत करीब-करीब बौद्ध देश बन गया था। बौद्ध धर्म समानता में आस्था रखता था जिसके कारण आम लोगों में ब्राम्हणवादी कर्मकांडों में रूचि कम हो गई थी। इससे ब्राम्हण बहुत दुःखी और नाराज थे। अशोक के पौत्र और अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या उसके सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने कर दी और उसके बाद उसने बौद्धों का कत्लेआम करवाया।
सभी विश्वसनीय स्त्रोतों से हमें यही पता चलता है कि ब्राम्हणों ने बदला लेने के इरादे से नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में आग लगाई थी। इसके लिए बख्तियार खिलजी को दोषी ठहराने के पीछे दो उद्देश्य हैं-पहला, मुसलमानों से नफरत करने के कारणों की सूची में एक और कारण जोड़ना और दूसरा, इतिहास के उस दौर में ब्राम्हणों और बौद्धों के बीच संघर्ष और बौद्धों की प्रताड़ना को छिपाना।
केवल बौद्ध काल के विश्वविद्यालय के प्रांगण में कार्यक्रम आयोजित करने से कुछ होने वाला नहीं है। बौद्ध शैक्षणिक संस्थाओं से हम जो सीख सकते हैं वह है अकादमिक स्वतंत्रता और खुलापन। आज भारत के विश्वविद्यालयों में वातावरण घुटनभरा है और आज्ञाकारिता को सबसे बड़ा गुण मान लिया गया है।
ऐसे वातावरण में ज्ञान का विस्तार और विकास नहीं हो सकता। भारत में ब्राम्हणवाद और बौद्ध धर्म के बीच संघर्ष का त्रासद इतिहास हमें यही सिखाता है। 26 जून 2024
(अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया. लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं)
Monday 8th July 2024 at 2:52 PM
विश्वविद्यालय में आई चौथे स्थान पर-GCG में छाई ख़ुशी की लहर
लुधियाना में लड़कियों का राजकीय कालेज बहुत ही पुराने कालेजों में से है। इस कालेज में दाखिला मिलना सौभाग्य की बात होती है। इसी कालेज में पढ़ कर बहुत सी लड़कियों ने जहां ज़िंदगी के संघर्ष में निजी सफलताएं हासिल की हैं वहीं परिवार और देश का नाम भी बहुत बार रौशन किया है।
इसी तरह की उपलब्धियों के सिलसिले में एक और अच्छी खबर आई है इसी कालेज से। गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गर्ल्स , लुधियाना के बी.कॉम. विभाग की छात्रा ने छठे सेमेस्टर के विश्वविद्यालय परिणामों में शानदार प्रदर्शन दिया।
गवर्नमेंट कॉलेज फॉर गर्ल्स, लुधियाना की छात्रा ने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ द्वारा आयोजित बी.कॉम. अंतिम सेमेस्टर की परीक्षाओं में किया। महक बंसल ने विश्वविद्यालय में चौथा स्थान प्राप्त किया। प्रिंसिपल श्रीमती सुमन लता ने छात्राओं की कड़ी मेहनत और समर्पण की सराहना की। उन्होंने विभाग अध्यक्ष श्रीमती सरिता खुराना और विभाग के अन्य शिक्षकों को उनके अथक प्रयासों और परिश्रम के लिए बधाई दी। उन्होंने छात्राओं को भविष्य में भी इसी तरह की उपलब्धियां हासिल करने का आशीर्वाद दिया।
कालेज में इस खबर को लेकर ख़ुशी की लहर छाई हुई है।
Wednesday 1st May 2024 at 22:09
मंजुल की तरफ से जारी है प्रगतिशील आंदोलन में अपना योगदान
जब बहुत से संगठन, बहुत से संस्थान और बहुत से समाजिक व सियासी लोग शिक्षा नीति में परिवर्तन के पक्ष में खड़े नज़र आ रहे हैं उस समय मंच को समर्पित लेखक–निर्देशक मंजुल भारद्धाज अपनी मस्ती में अडिग अडोल रहते हुए साज़िशों की इस धुंध को चीरने में जुटे हुए हैं। उनकी यतीम इस दिशा में कुछ न कुछ करती ही रहती है। उनके सवाल उन साजिशों के पीछे छुपे चेहरों को बेनकाब करने वाले होते हैं जो नारी और शिक्षा के खिलाफ बार बार इस तरह की साईशें रचते हो रहते हैं। सवालों के इसी सिलसिले में लगातार सवाल करते करते मंजुल भारद्वाज बहुत कुछ उधेड़ते चले जाते हैं।
इस लज्जाहीन समाज और सिस्टम पर किसी तमाचे की तरह वह पूछते हैं-कि नाटक,साहित्य और सिनेमा में महिलाओं की क्या भूमिका है? महिलाओं को पुरुषों की यौन संतुष्टि वाली भूमिकाओं तक सीमित रखा जाता है या महिला को नुमाइश, चुगलखोर,घर विध्वंसक,किसी के पति को छीनने का षड्यंत्र करते दिखाया जाता है. क्या देश या दुनिया की महिलाएं यही डिजर्व करती हैं? क्या महिलाएं इसी लायक हैं? सभ्यता,संस्कार,संस्कृति वाले देश और समाज में महिला कहाँ है? क्या रचनाकार उसे एक इंसान के रूप में देखते हैं? क्या खुद महिला भी एक शोभा वस्तु बनकर खुश है या उसके आगे वो अपनी भूमिका देखती है? इस तरह वह नारी मन में भी एक चेतना लगाने का काम कर रहे हैं।
मंजुल सिर्फ कहते नहीं करते भी हैं। आज उनके नाटक का मंचन था। बहुत ही लोकप्रिय नाटक। महिला को एक इंसान के रूप में समता,बंधुता और न्याय की पैरोकार के रूप में अपने आप को खोजते हुए देखिये नाटक ‘लोक-शास्त्र सावित्री’ में!
इस लोकप्रिय नाटक का नाम भी बहुत अर्थपूर्ण है। लोक –शास्त्र सावित्री (मराठी) इस नाटक के लेखक और निर्देशक हैं स्वयं मंजुल भारद्वाज। इसका मंचन शुरू हुआ नटसम्राट निळू फुले नाट्यगृह, नवी सांगवी #पुणे में मई दिवस के अवसर पर बाद दोपहर 2.30 बजे। इस नाटक की चर्चा हम अपनी दूसरी पोस्टों में भी करते रहेंगे।
Friday: 5th April 2024 at 5:09 PM
जी-20 स्कूल कनेक्ट लीडरशिप सम्मेलन का हुआ यादगारी आयोजन
देश भगत विश्वविद्यालय ने आज लुधियाना में जी-20 स्कूल कनेक्ट लीडरशिप सम्मेलन पुरस्कार का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में डीबीयू द्वारा लुधियाना के प्रिंसिपलों को उनकी उल्लेखनीय उपलब्धि के लिए स्मृति चिह्न और प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया।
जी-20 कार्यक्रम में सभी प्रिंसिपलों ने पैनल चर्चा की। पैनल चर्चा में विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों नई शिक्षा नीति को समझना, शिक्षा क्षेत्र में आगामी प्रौद्योगिकी का रुख, कक्षाओं में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को सम्मिलित करना, छात्र कल्याण को प्राथमिकता देना, सक्रिय और प्रयोगात्मक शिक्षा विधियों को प्रोत्साहित करना, उद्यमिता शिक्षा को प्रोत्साहित करना, शिक्षा में वैश्विक चुनौतियों का सामना करते हुए रचनात्मकता और कौशल को बढ़ाने के साथ ही स्वास्थ्य और खेल शिक्षा को प्रोत्साहित करना रहा।
इससे पहले यहां आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीबीयू के उपाध्यक्ष डा. हर्ष सदावर्ती ऑनलाइन और फैक्लटी आफ सोशल साइंसेज एंड लंग्वेजेज के डायरेक्टर डा. दविंदर शर्मा पत्रकारों से रुबरु हुए। डा. हर्ष सदावर्ती ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लागू की गई नई शिक्षा नीति के बारे में विस्तार से जानकारी दी। स्कूलों में टेक्नोलॉजी की भूमिका अहम है। अब विद्यार्थी लर्निंग के नए कंसेप्ट पर काम काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि डीबीयू स्टूडेंट्स की प्लेसमेंट के लिए प्रतिबद्ध है, इसके मद्देनजर जॉब फेयर लगाए जाते हैं, जिसमें देश के नामचीन ब्रांड शिरकत करते हैं। विद्यार्थियों के पढ़ाई के प्रति जुनून को देखते हुए पेरेंट्स भी सीरियस हो गए हैं, इससे इनके बाहर जाने के रुझान में कमी आएगी। डीबीयू में पैन इंडिया दस हजार विद्यार्थी शिक्षा ले रहे हैं, इसमें 25 देशों से करीब 700 विद्यार्थी हैं। शक्ति स्कॉलरशिप, जरूरतमंद, सिंगल गर्ल चाइल्ड जैसी कई तरह की स्कॉलरशिप यूनिवर्सिटी दे रही हैं, इनमें 200 से अधिक कोर्स कराए जा रहे हैं। डा. सदावर्ती ने आगे बताया कि डीबीयू अपने विद्यार्थियों को अपस्केल कर रही है। हम स्टूडेंट्स को नौकरी की चाह रखने वाला नहीं बल्कि जॉब प्रोवाइडर बनाना चाहते हैं।
जी20 स्कूल कनेक्ट लीडरशिप सम्मेलन में नेतृत्व, शिक्षा में नवाचार और सामुदायिक जुड़ाव से संबंधित शख्सियतों को पुरस्कृत किया गया।
इनमें प्रिंसिपल डॉ. भरत दुआ, डॉ. वंदना शाही, ठाकुर आनंद सिंह, रमेश सिंह, अमरजीत कुमार, करुण कुमार जैन, किरणजीत कौर, कमलवीर कौर, कीर्ति शर्मा, हरमीत कौर वड़ैच, डॉ. मोनिका मल्होत्रा, डॉ. नीतू शर्मा, पूनम शर्मा, अर्चना श्रीवास्तव, पूनम मल्होत्रा, रमन ओबेरॉय, डॉ. नवनीत कौर, पंकज कौशल, डॉ. संजीव चंदेल, डॉ. मनीषा गंगवार, नीरू कौड़ा, सिमर गिल, गुरमंत कौर गिल और बंदना सेठी जैसी विशिष्ट शख्सियतों को उनके असाधारण योगदान के लिए सम्मानित किया गया।
सोमवार 26 फरवरी 2024 को शाम 07:17 बजे
उन्होंने पहली बार ‘द स्टेट्समैन’ के साथ फ्रीलांस काम किया
एससीडी सरकारी कालेज लुधियाना के पूर्व छात्र संघ (एलुमनाई) ने समूह कप्तान अमर जीत सिंह ग्रेवाल के निधन की शोक व्यक्त की है, जिनका संक्षिप्त बीमारी के बाद 23 फरवरी 2024 को निधन हो गया. विलेज किला रायपुर में जन्मे उन्होंने 1951 में कॉलेज में अंग्रेजी में अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन की और पत्रकारिता में एक कोर्स के बाद, उन्होंने पहली बार ‘ द स्टेट्समैन ’ के साथ फ्रीलांस के तौर पर काम किया। इस तरह वह सक्रिय पत्रकारिता के साथ भी जुड़े रहे।
कॉलेज के प्रिंसिपल मंजीत सिंह संधू के एक पुराने छात्र ने उनके देहांत की सूचना देते हुए कहा, “ग्रुप कैप्टन ग्रेवाल को 1953 में भारतीय वायु सेना में नियुक्त किया गया था जहां उन्होंने 1979 तक देश की जोशो खरोश के साथ सेवा की थी।
कॉलेज का यह शानदार पूर्व छात्र 1960 में माउंट एवरेस्ट पर भारत के पहले अभियान का हिस्सा भी था और वर्ष 1973-1977 तक पर्वतारोहण संस्थान दार्जिलिंग के प्रिंसिपल के पद तक बढ़ गया था. वह पर्वतारोहण, उत्तारकाशी के प्रधान नेहरू संस्थान भी बने. सेवानिवृत्ति के बाद वह 1979 से 1991 तक प्रिंसिपल पीपीएस नभा थे और 1988 से 1991 तक दशमेश अकादमी, श्री आनंदपुर साहिब के अतिरिक्त प्रभार में रहे. उनके शौक में फोटोग्राफी, ट्रेकिंग, पत्रकारिता और शूटिंग शामिल थे. वह रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी, लंदन के फेलो और अल्पाइन क्लब, लंदन ” के सदस्य थे।
श्री संधू ने उन क्षणों को याद किया जब वह दशमेश अकादमी में उनसे मिले और उनकी मृत्यु को एक युग का अंत कहा. एस. किला रायपुर के जियान सिंह सरपंच भी एक पुराने छात्र थे, जो उनकी मृत्यु के शोक में शामिल हुए और कहा कि ग्रेवाल ने उनकी उपलब्धियों पर गर्व किया.
श्री ग्रेवाल के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, पूर्व छात्र संघ के समन्वयक, ऑर्ग सचिव-समन्वयक, ब्रज भूषण गोयल ने कहा कि उनके कॉलेज ने छात्रों की एक मजबूत सरणी तैयार की है, जो उत्कृष्ट प्रशासनिक और सेना के पदों पर बने रहे और देश में व्यवसायों में भी सफल रहे। विश्व स्तर पर भी. कॉलेज को पूर्व छात्र डेटाबेस को मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि नई पीढ़ियों को कॉलेज की समृद्ध विरासत का पता चले।
उनकी जीवन यात्रा और इस कालेज के साथ संबंधों का विवरण देते हुए श्री गोयल ने बताया कि मैंने पंजाब सरकार से 6500 की ताकत के इस कॉलेज के संकाय बुनियादी ढांचे को और अधिक गंभीरता से मजबूत करने का अनुरोध किया, जो इस तरह के शानदार दिमाग देने का वादा करता है, बशर्ते कि यह अपनी तत्काल जरूरतों के अनुसार ईमानदारी से समर्थित हो. Gp Cap.AJS Grewal जैसे पूर्व छात्रों का जीवन और समय हमेशा पोस्टरिटी को प्रेरित करेगा।
इस मौके पर श्री ग्रेवाल के बेटे के एस ग्रेवाल ने कहा कि उनके पिता हमेशा लुधियाना में अपने अल्मा मेटर से मिलने के लिए तड़पते रहते थे। उनका इस कालेज और पूर्व छात्रों के साथ बेहद लगाव रहा।
Saturday10th February 2024 at 9:08 PM
दोनों ई-वाहनों की चाबियाँ सौंपी गई माननीय निदेशक, प्रोफेसर (डॉ.) बलदेव सेतिया को
जब शिक्षा दीक्षा पूर्ण हो जाती है तब उस शिक्षा से मिला फायदा ज़िंदगी को कामयाबी दिलाता है। उस कामयाबी से दौलत भी मिलती है और शोहरत भी। उस दौलत में से बहुत से लोग दसवंद अर्थात दशम हिस्सा निकाल कर धर्म स्थलों के लिए दान स्वरूप निकालते हैं। इसी भावना से बहुत से छात्र भी अपने उन शिक्षा संस्थानों के लिए दान देते हैं जहाँ से उन्हें ज़िंदगी जीने के लिए आवश्यक ज्ञान मिलता है। PEC अर्थात पंजाब इंजिनयरिंग कालेज के छात्रों ने भी अपने इस पावन पवित्र शिक्षा के मंदिर के लिए दान निकाला जिसकी चर्चा भी काफी हुई। लोगों ने इसकी प्रशंसा भी की।
Wednesday 31st January 2024 at 3:26 PM
डॉ. साकेत चट्टोपाध्यायने बताए "ट्रांसलेशनल रिसर्च एंड एंटरप्रेन्योरशिप" पर विशेष गुर