Sunday, May 10, 2020

मां का ऋण तो कोई उतार ही नहीं सकता

 आज की पीढ़ी को भी मां के प्रति अपने कर्तव्य याद रखने चाहिएं 
लुधियाना: 10 मई 2020: (*आरती सिंगला)::
लेखिका आरती सिंगला 
एक औरत के कई रूप होते हैं जैसे के मां, बहन, पत्नी और  प्रेमिका। औरत हर रूप में त्याग की मूरत मानी जाती है  वह अपनी सारी ज़िंदगी त्याग करती हुई गुज़ार देती है, पर जब वह मां बन जाती है तो अपने आप को भूल जाती है। औरत सिर्फ  बच्चे के जन्म के बाद ही नहीं बल्कि  उसके जन्म से पहले भी बहुत कष्ट सहन करती है। उसकी ज़िंदगी का एक ही उद्देश्य रह जाता है कि वह अपने बच्चे की अच्छी तरह से परवरिश करें, उसको अच्छे संस्कार दें और उसको एक सफल और एक अच्छा नागरिक बनाएं। इसीलिए मां को ही बच्चे की पहली अध्यापका होने का दर्जा दिया जाता है पर आज हमारे समाज में मां सिर्फ अपने घर के काम तक सीमित ना रहकर अपनी बाहर की ज़िम्मेदारियों को भी उतनी अच्छी तरह से निभाती है जैसे एक मां अपने बच्चे के प्रति सारी ज़िंदगी सब कुछ करती है लेकिन इस सबके बदले में मां अपने लिए कुछ भी नहीं मांगती।  वह हमेशा यही चाहती है कि उसका बच्चा जहां भी रहे खुश व सुखी रहे। आज जरूरत है बच्चों में मां के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने की भावना पैदा करने की। हमारे समाज में आज की पीढ़ी स्वार्थी बनती जा रही है। बच्चों को चाहिए कि वह अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकालकर अपनी मां के प्रति भी अपने फर्ज पूरे करें।  एक  मां का ऋण तो कोई नहीं उतार सकता पर इतना तो बनता ही है की वह अपने कर्तव्यों को सही ढंग से पूर्ण करके अपनी मां को सुख  पहुंचाए।--*आरती सिंगला
*आरती सिंगला  जैन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल ,लुधियाना के कॉमर्स विभाग शिक्षिका

3 comments: