मां के लिए सिर्फ एक दिन ही क्यों?
सोनिया नागपाल |
मैं अंश हूँ उस रूह का
जिसने तकलीफ में मुझे पाला था
जब अंदर उसके सिमटा था
उसका रोम रोम खिल उठता था
मेरी नब्ज़ उससे जुड़ती थी
तब वह अकेली बैठ कर हंसती थी।
ये पंक्तियां हैं मेरे उस रिश्ते के लिए जो इस दुनिया में आने से पहले ही मेरे साथ जुड़ गया था। कहते है कि हर इंसान को हर रिश्ता जन्म लेने के बाद ही मिलता है परन्तु मां का रिश्ता दुनिया में आने से पहले ही मिल जाता है। का यह किसी चमत्कार से कम है?
आज Mother's Day है, मेरी मां और उन सभी माओं को प्रणाम जिन्होंने ने एक बीज को इंसान रूप दिया और इस दुनिया में लेकर खड़ा कर दिया। कहते है कि मां के लिए सिर्फ एक दिन ही क्यों? मां तो एक हस्ती है, जिसके लिए लाखों दिन भी कम है। मां के लिए हमारी ज़िन्दगी की हर एक सांस अर्पित है। मां खुद जलती है परन्तु हमेशा अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना करती है। मां की कुर्बानियां इतिहास से लेकर अब तक चलती आ रही है। मां अपने बच्चो के लिए जितना सहती है, उसे शब्दों में ब्यान करना कठिन है।
वर्तमान काल की स्थिति जहां कोरोना वायरस ने चारो तरफ हाहाकार मचा रखा है, मां की कुर्बानियां यहां भी नज़र आ रही है। हाल ही में मैंने उन लोगो को देखा जो पलायन कर रहे है, जिसमे गर्भवती महिलाये भी शामिल है। अपने पेट में सात माह के बच्चे को लेकर अपने गांव लौट रही हैं। इससे बढ़ी उदाहरण क्या होगी मां की ममता की?
मां का देना हम दे नहीं सकते ,
मां को शब्दों में बयाँ हम कर नहीं सकते।
--*सोनिया नागपाल
--सोनिया नागपाल जैन गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल लुधियाना के इंग्लिश विभाग में शिक्षिका हैं।
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